देश की वित्तीय स्थिति नाजुक है। सरकार और निजी क्षेत्र दोनों पर इसका असर साफ नजर आ रहा है। अर्थव्यवस्था में मंदी की वजह से कारपोरेट जगत बेहाल हुआ जा रहा है। इस मंदी का असर कर संग्रहण पर भी पड़ रहा है। सरकार के राजस्व संग्रह लक्ष्य पूरे नहीं हो पा रहे हैं। वित्त वर्ष 2016-17 में अप्रत्यक्ष कर संग्रह में बढ़ोतरी की दर बीस फीसद थी जो 2017-18 में घट कर 5.8 फीसद रह गई। इसका असर देश की आर्थिक वृद्धि पर पड़ रहा है। जीएसटी आर्थिक सुधारों के लिहाज से एक अच्छा कदम था, लेकिन जीएसटी के तहत अनुमानित कर संग्रह नहीं हो पा रहा है। जीएसटी संग्रहण में स्टाफ की कमी, राज्यों से सहयोग नहीं मिलना और केंद्र व राज्यों में तालमेल की कमी जैसे कारणों से अप्रत्यक्ष कर की वसूली बहुत कम हो रही है। इसका राजकोषीय संतुलन पर असर पड़ रहा है। सरकार राजकोषीय संतुलन साधने के लिए एक ओर विदेशी उधारी बढ़ा रही है और दूसरी ओर देश की जनता की बचत को उपयोग में ला रही है। इसके अलावा, निर्यात बढ़ाने लिए भी ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। सरकार ने इस साल के बजट में आयात शुल्क को बढ़ाया है। सिर्फ आयात को कम करके सरकार भुगतान संतुलन को सुधारना चाहती है।
’दीपक गिरकर, इंदौर
रफ्तार की उम्मीद
हाल में भारतीय रिजर्व बैंक ने सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था में नया जोश भरने के लिए इस साल लगातार चौथी बार नीतिगत दरों में कटौती की। मौद्रिक नीति समिति का यह कदम स्वागत योग्य है क्योंकि इस कटौती के परिणामस्वरूप सस्ता ऋण उपलब्ध होगा, तरलता बढ़ेगी, बाजार में मांग बढ़ेगी और अंतत: उत्पादन भी बढ़ेगा। उम्मीद है कि केंद्रीय बैंक के इस कदम से अर्थव्यवस्था के हालात सुधरेंगे, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और निवेश के बढ़ने से अर्थव्यवस्था को भी रफ्तार मिलेगी।
’कपिल एम. वड़ियार, पाली, राजस्थान
चौपालः खतरे में अर्थव्यवस्था
जीएसटी आर्थिक सुधारों के लिहाज से एक अच्छा कदम था, लेकिन जीएसटी के तहत अनुमानित कर संग्रह नहीं हो पा रहा है। जीएसटी संग्रहण में स्टाफ की कमी, राज्यों से सहयोग नहीं मिलना और केंद्र व राज्यों में तालमेल की कमी जैसे कारणों से अप्रत्यक्ष कर की वसूली बहुत कम हो रही है।
Written by जनसत्ता

TOPICSIndian Economy
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First published on: 10-08-2019 at 04:55 IST