देश में बच्चों की दशा-दिशा का जायजा लेने वाली प्रतिष्ठित वार्षिक सर्वेक्षण रिपोर्ट असर- 2019 ‘अर्ली ईयर्स’ ने यह खुलासा किया कि जहां मोबाइल चौरानबे फीसद लोगों के पास है जिनमें साढ़े बावन फीसद के पास स्मार्टफोन है वे इंटरनेट से लैस हैं। पैंसठ फीसद के पास पक्का मकान, छियानबे फीसद के पास बिजली कनेक्शन और उन्यासी फीसद के पास शौचालय है, जबकि केवल दस फीसद परिवार के बच्चों के पास पठनीय सामग्री उपलब्ध है।
यह बहुत दुखद है कि जिस देश को सौ फीसद डिजिटल बनाने की बात हो रही है, वहीं के पूर्व-प्राथमिक स्कूल के बच्चों के पास पाठ्य सामग्री नहीं है। कहा जाता है कि किसी देश के विकास की रीढ़ उस देश की शिक्षा-व्यवस्था होती है। भारत सरकार को इस सर्वे पर विशेष ध्यान देकर शिक्षाविदों का विचार लेकर इसका समाधान जल्द से जल्द करना चाहिए। इस सर्वे में चार से आठ आयु वर्ग के बच्चों के पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालय में नामांकन और कुछ महत्त्वपूर्ण विकासात्मक संकेतकों पर बच्चों की क्षमताओं पर जानकारी एकत्रित की गई। इस सर्वे के दौरान देश के चौबीस राज्यों के छब्बीस जिलों में 1514 गांव, 30425 घर और चार से आठ आयु वर्ग के 36930 बच्चों पर केंद्रित है।
यह सर्वे शिक्षा की गुणवत्ता पर भी प्रश्न खड़ा करता है। इसके अनुसार कक्षा पांच के आधे से भी कम छात्र कक्षा दो का पाठ पढ़ पाते हैं। एनसीईआरटी के सीखने के परिणामों के विनिर्देश अनुसार बच्चों को एक में निन्यानबे तक पहचानने में सक्षम होना चाहिए, लेकिन प्राप्त परिणाम के अनुसार यह औसत बहुत ही कम है। बुनियादी शिक्षा की खराब गुणवत्ता देश की क्षमता पर असर डाल रही है। शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के अनुसार बच्चों को छह वर्ष की आयु में कक्षा एक में प्रवेश लेना चाहिए, लेकिन धरातल पर पांच वर्ष से कम और सात या आठ वर्ष की उम्र के बच्चे कक्षा एक में ज्यादा प्रवेश ले रहे हैं।
सर्वे से हम एक और निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इन छोटे बच्चों के बीच भी लड़के और लड़कियों के नामांकन पैटर्न अलग-अलग दिखे, जिसमें लड़के निजी और लड़कियां सरकारी संस्थाओं में ज्यादा नामांकित हैं। उम्र के अनुसार या अंतराल बढ़ता जाता है। अंग्रेजी कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने कहा है- ‘चाइल्ड इज द फादर ऑफ मैन’। लेकिन हम देखते हैं कि पक्के मकान, स्मार्टफोन, अच्छे रहने की सुविधाओं पर खूब जोर दिया जा रहा है, लेकिन बच्चों के पढ़ने की व्यवस्थाओं में बहुत कमी की जा रही है।
इसका परिणाम यह होगा कि आने वाले समय में हमारा देश शिक्षा के बहुत ही बुरे स्तरों से गुजरेगा। आज हम विश्व के शीर्ष दो सौ विश्वविद्यालयों में भी अपना स्थान नहीं बना पाए हैं, क्योंकि पूर्व प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक शिक्षा,उच्चतर शिक्षा की रीढ़ या नींव होती है, इसलिए हमारी सरकार को पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक स्तर के बच्चों के ऊपर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
’तेज बहादुर मौर्य, बीएचयू, वाराणस