दिल्ली में चल रहे किसान संगठनों को लेकर कनाडा, ब्रिटेन के बाद इस्लामी देशों के संगठन और संयुक्त राष्ट्र ने भी अपनी गैरजरूरी टिप्पणी की है। संयुक्त राष्ट्र अब एक ऐसा संगठन बनता जा रहा है, जो ‘सहनशील’, ‘लोकतांत्रिक’ मूल्यों पर चलने वाले देश पर विचित्र टिप्पणियां गाहे-बगाहे करता रहता है। लेकिन लोकतंत्र और मानवीय अधिकारों की दुहाई देने वाले संयुक्त राष्ट्र को अलोकतांत्रिक, तानाशाही चीन की कारगुजारियों पर कुछ भी कहने से पहले सौ-बार सोचना पड़ता है। उसके बाद भी जो वक्तव्य निकलता है, वह किसी दरबारी की दिलेरी से कम नहीं लगता।

पूरी दुनिया को चीन ने जिस षड्यंत्र के तहत मौत के मुहाने पर लगभग पहुंचा दिया, उस पर अभी तक संयुक्त राष्ट्र की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इसके अलावा, आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच लंबे चले युद्ध को रोकने में भी संयुक्त राष्ट्र बुरी तरह विफल हुआ है। दूसरे कई मामलों में उसका यही रुख रहा है। ऐसे में क्यों न माना जाए कि संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यों से भटक गया है और यह सिर्फ पांच देशों की ताकत प्रदर्शन का एक मंच बन कर रह गया है? इस सब हरकतों के कारण अब संयुक्त राष्ट्र में आमूलचूल बदलाव अत्यावश्यक हो गए हैं। दुनिया को इस पर दबाव बनाना शुरू कर देना चाहिए, ताकि भविष्य में फिर कभी इसकी ‘ढुलमुल ढिलाई’ के कारण चीन सरीखा विस्तारवादी देश दुनिया के करोड़ों भोले-भाले लोगों की मौत का कारण न बन सके।
’युवराज पल्लव, मेरठ, उप्र

मिलावट का जहर

आजकल एक खबर सुर्खियों में है कि देश की कुछ शहद बेचने वाली कंपनियों के शहद के लगभग सतहत्तर फीसद नमूनों में शुगर की मिलावट पाई गई है। इसकी सच्चाई निष्पक्ष और उचित जांच से ही पता चलेगी। कितना शर्मनाक और निंदनीय है कि कुछ लोग अपने थोड़े से लाभ के लिए खाने-पीने के सामान में मिलावट के जरिए दूसरों की जिंदगी में जहर घोल रहे। मिलावट का यह गोरखधंधा बंद कैसे होगा? सरकार और प्रशासन की ओर से इस गोरखधंधे पर नकेल कसने के लिए बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं।

इसके लिए सख्त कानून भी बने हैं। लेकिन भ्रष्टाचार से लेकर मिलीभगत तक की वजह से सारे कानून और कार्रवाइयां धरी की धरी रह जाती हैं। अगर गलत और मिलावटी खानपान से हमारी सेहत खराब होगी तो इससे परेशानी और आर्थिक नुकसान हमारा होगा, न कि सरकारों का। इसलिए खानपान की गुणवत्ता में सुधार के लिए हमें सरकारों का मुंह नहीं ताकना चाहिए, बल्कि खुद ही जागरूक होकर इसके लिए अपने स्तर पर उपाय करने चाहिए।

यों सरकारों ने खानपान का घटिया और मिलावटी सामान बेचने वालों पर शिकंजा कसने के लिए कुछ विभागों का गठन किया है, लेकिन इन विभागों की लापरवाही और आम लोगों द्वारा गलत-घटिया खानपान का सामान बेचने वालों की शिकायत संबंधित विभाग में न कराने कारण सरकारों के प्रयास इस मामले सफल नहीं हो पा रहे। एक तरफ तो सरकारें भारत को स्वस्थ बनाने का सपना देख और दिखा रही हैं, तो दूसरी तरफ खाने-पीने की चीजों की गुणवत्ता सुधारने के लिए कोई ध्यान नहीं दे रही। क्या ऐसे बनेगा स्वस्थ भारत?
’राजेश कुमार चौहान, जालंधर, पंजाब</p>