हमारे देश के किसान सरकार द्वारा पारित तीन कृषि बिलों के खिलाफ आंदोलनरत हैं। सरकार का कहना है कि किसानों को बिलों के बारे में भ्रमित किया गया है और उन्हें समझने की जरूरत है। किसान यूनियनों के चालीस प्रतिनिधि इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। इन बिलों के बारे में पूरी जानकारी सामने होना चाहिए, ताकि सिक्के के दोनों पहलुओं को समझ जा सके। कई दलों ने भारत बंद का समर्थन किया। किसान पहले ही घोषित कर चुके हैं कि वे इस आंदोलन का राजनीतिकरण नहीं करेंगे।
यह बहुत अच्छी सोच है, क्योंकि पार्टियां इस आंदोलन को अपने वोट बैंक में बदलना चाहती हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। सरकार को सर्वदलीय बैठक का आयोजन करना चाहिए। इस मुद्दे को हल करने के लिए सरकार के साथ-साथ अन्य दलों को भी इस समस्या को हल करने के लिए सकारात्मक होना चाहिए। श्रमिकों को भी बातचीत करने के लिए अपना मन बनाना चाहिए, ताकि आम जनता को एक और भारत बंद का सामना न करना पड़े। लेकिन ऐसे बंद से अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचता है, साथ ही देश की आम जनता के जीवन में खलल पैदा होता है। आशा है कि यह मुद्दा बहुत जल्द सुलझ जाएगा।
’नरेंद्र कुमार शर्मा, भुजडू, मंडी, हिप्र
पर्यावरण का संकट
विज्ञान के इस युग में जहां हमें कुछ वरदान मिले, वही कुछ अभिशाप भी उसी में से एक हैं। प्रदूषण हमारे समाज का ऐसा अभिशाप है, जो दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और हम इससे रोकने में असमर्थ हैं। महानगरों में जो प्रदूषण बढ़ रहा है, उसका असर दूरदराज के गांव में देखने को मिल रहा है। जिस स्वास्थ्य के लिए हमने विज्ञान का सहारा लिया, आज वही हमारी बर्बादी के कारण बन रहा है। अपने स्वार्थ के लिए हमने जगलों, पशु, पक्षी, नदियों को भी नहीं छोड़ा।
आज जिस तरह जलवायु परिर्वतन से देश जूझ रहा हैं, उसके कारण हम हैं। चाहे वह अरेरा के जंगल हो या यमुना और गंगा का पानी हो। जिन राज्यों में अब तक ठंड पड़नी शुरू हो जाती है, वहां अभी 38 डिग्री तक गरमी है। जलवायु परिर्वतन से अगर किसी क्षेत्र को सबसे ज्यादा नुकसान होगा, तो वह है कृषि। मौसम के इस हाल को समझना मुश्किल होगा, जिसके कारण फसलों पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। इससे रोकने के लिए हमें कुछ जरूरी कदम उठाने चाहिए, ताकि हमें इससे रोक सके।
’अनिमा कुमारी, पटना, बिहार
फिक्र की औपचारिकता
समझ में नहीं आता कि अमेरिका हर साल धार्मिक उत्पीड़न करने वाले देशों की सूची प्रकाशित क्यों करता है! इससे वह क्या संदेश देना चाहता है? क्या उसके ऐसा करने से अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले देशो की संख्या घटी है? इस बार भी नई सूची जारी की गई है। इसमें दस देशों को रखा गया है। अधिकतर वही देश हैं जो पहले भी इसमें शामिल थे।
बर्मा, चीन, इरीट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, सऊदी अरब, पाकिस्तान, तजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान। इन्हें क्या पहली बार लोगों का धार्मिक अधिकार छीनने वाला देश नामित किया गया है? उलटे इनमें से सऊदी अरब और पाकिस्तान के साथ अमेरिका के मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। जब आपके पास धर्म के नाम पर उत्पीड़न करने वालों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का कोई नीति ही नहीं हो तो केवल नाम उछालने से क्या होगा? यह महज औपचारिकता है। इससे इन देशों के अल्पसंख्यकों को कोई लाभ नहीं होने वाला।
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड</p>