संपादकीय ‘पुलिस का चेहरा’ पढ़ा। आम आदमी की राय पुलिस के बारे में नकारात्मक ही है। लेकिन पुलिस का आम आदमी से ऐसा व्यवहार क्यों होता है, यह भी जानने की आवश्यकता है। एक सिपाही का कोई ड्यूटी टाइम नहीं होता। 26 जनवरी, 15 अगस्त, 2 अक्तूबर जैसे राष्ट्रीय त्योहार हों या होली, दिवाली, ईद जैसे धार्मिक त्योहार हों, पुलिस वाले हमेशा सड़कों पर ड्यूटी कर रहे होते हैं।
शायद ही कोई पुलिस वाला इन त्योहारों को अपने परिवार के साथ मना पाता हो। एक सिपाही के बच्चे का जन्मदिन हो या बहन की शादी, उसे छुट्टी कम ही मिलती है। ये कुछ वजह हैं, जिनके कारण पुलिस वाले तनाव में रहते हैं। लेकिन मेरे यह कहने का मतलब यह नहीं है कि मध्यप्रदेश में जो हुआ वह ठीक था।
उन पुलिसकर्मियों को सजा अवश्य मिलनी चाहिए, लेकिन पुलिस वाले किन तनावपूर्ण हालात में ड्यूटी करते हैं उस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। ड्यूटी और जिम्मेदारियों के बीच उनकी संवेदनात्मक जरूरतों पर गौर किया जाना चाहिए कि आखिर मनोवैज्ञानिक उथल-पुथल के बीच कैसे वे अमानवीय होते चले जाते हैं। उन्हें मानवीय बनाए रखने के लिए परिस्थितियां भी निर्मित की जानी चाहिए और प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए।
’चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली</p>
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