शीत ऋतु के आगमन के साथ ही रवि फसलों की बुआई शुरू हो चुकी है। एक तरफ किसान धान की फसल की कम कीमत को लेकर चिंतित हैं और कम कीमतों पर बिचौलियों के हाथों बेचने को मजबूर हैं, वहीं वे आगे की कृषि से संबंधित कार्ययोजना और उसकी पूर्ति के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।

ग्रामीण परिवेश के अंतर्गत किसानों की आय का प्रमुख स्रोत कृषि ही होती है। वर्ष भर लगातार मेहनत के बाद फसल तैयार होते ही किसान के अंतर्मन में एक उम्मीद जाग्रत होती है कि अब उसकी फसल और मेहनत का उचित पारिश्रमिक मिलेगा और उसकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकेगी। लेकिन फसल की कम कीमत के चलते तथा उसके परिश्रम का जब उसे उचित पारिश्रमिक नहीं मिलता तो वह अंतर्मन से निराश हो जाता है।

वर्तमान परिदृश्य में जहां सब्जियों की कीमतों में कालाबाजारी के चलते व्यापारियों और बिचौलियों को भरपूर मुनाफा मिल रहा है, वहीं किसान को धान की फसल में उचित कीमत न मिलने से भारी नुकसान हो रहा है। अब नई व्यवस्था में जिस तरह आवश्यक वस्तुओं के भंडारण का प्रावधान कर दिया गया है, उससे यह समस्या और बढ़ेगी।

यह हमारे देश के किसानों का त्रासदी है कि जब किसान के पास उसकी अपनी फसल होती है तो उसे उचित कीमत नहीं मिलती और जब उसे किसी चीज की जरूरत होती है तो वह उसकी बढ़ी हुई कीमत देख कर सहम जाता है और जरूरतों की पूर्ति की आवश्यकता के चलते उसे आर्थिक और मानसिक शोषण का शिकार होना पड़ता है।

सरकार द्वारा अक्सर नई कृषि नीतियां और कृषि में सुधार के लिए नियम और कानून बनाए जाते हैं, पर उनका उचित क्रियान्वयन न होने की वजह से किसान का हित प्रभावित होता है।

सरकार को कृषि नीतियों के निर्माण के साथ ही उसके क्रियान्वयन के लिए भी सख्त कदम उठाते हुए जमाखोरी की व्यवस्था को बढ़ावा देने के बजाय कालाबाजारी को नियंत्रित करने का यथासंभव प्रयास करना चाहिए। तभी अन्नदाताओं की आर्थिक, मानसिक तथा सामाजिक स्थिति को सुदृढ़ करते हुए उनके जीवन स्तर में सुधार किया जा सकता है।
’शशिभूषण बाजपेयी, बहराइच, उप्र

समता का समाज

देश भर में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, शोषण और सामाजिक कुरीतियों से लड़ने के लिए महिलाओं को सशक्त होकर अपने अधिकारों के प्रति हमेशा निडर होकर आगे बढ़ने की जरूरत है। सरकार द्वारा जारी नियम-कायदों में पारदर्शिता लाने की जरूरत है, ताकि महिलाओं के प्रति लोगों में जनसहयोग की भावना बढ़े।

गांवों और शहरों में महिलाओं के प्रति लोगों का नजरिया दिनोंदिन बदलता जा रहा है। आसपास इलाकों में रहने वाले लोगों को यह समझना चाहिए कि महिलाओं का भी समाज में उतना ही स्थान है, जितना कि हमारा, लेकिन कुछ लोग नहीं समझ पाते कि हमारे घर पर भी इन्हीं में से एक महिला है और हमारा अस्तित्व ही महिला की वजह से है।

अब जैसे हालात होते जा रहे हैं, उसमें महिलाओं को अपनी आत्मरक्षा के लिए सतर्क रहने की जरूरत है। सरकार की ओर से समय-समय पर महिलाओं के लिए उचित परामर्श के साथ सशक्तिकरण से संबंधित कार्यक्रम करवाए जाएं, ताकि लोगों के भीतर महिलाओं के प्रति सकारात्मक प्रभाव बन सके! ये वास्तविक सशक्तिकरण की दिशा में बढ़े कदम होंगे।

कहने का आशय यह है कि समाज में आज ही बहुत सी अज्ञानता जड़े जमाए हुए है, जिसे आपस में मिलजुल कर ही दूर किया जा सकता है और एक समानता आधारित सशक्त समाज बनाया जा सकता है। स्कूल स्तर पर अगर पाठ्यक्रम में ही इस विचार पर केंद्रित पाठ शामिल किया जाए तो बच्चों को शुरू से ही संवेदनशीन बनाने में मदद मिलेगी।
’गोपेश चंद्रा, मगांअंहिं विवि, वर्धा, महाराष्ट्र</p>