भारत और ग्रीस की गणना पुरातन सभ्यताओं में की जाती है। पर आज के संदर्भों में इन दोनों देशों की तुलना का कोई आधार नहीं है। भारत सवा अरब आबादी के साथ विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में तेजी से उभरती अर्थव्यववस्था है, जबकि ग्रीस एक करोड़ ग्यारह लाख आबादी के साथ दिवालिया होने की कगार पर है।

ग्रीस में मौजूदा उभरे संकट के बाद अगर तीसरे बेलआउट पैकेज को स्वीकार किया जाता है तो वह कितना आर्थिक संकट से उबर पाएगा, यह भविष्य बताएगा। लेकिन ऐसी संभावना तभी बन पाएगी, जब इस बेलआउट राशि का उपयोग पुराने कर्ज चुकाने में न किया जाए। अर्थव्यवस्था में सुधार तक अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के ऋण की अदायगी को स्थगित किए बगैर सुधार की संभावना नगण्य है।

ग्रीस के संकट का भारत पर असर पडेÞ या नहीं, भारत को इससे सबक तो लेना ही चाहिए। ग्रीस के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान नगण्य है और सेवा क्षेत्र का योगदान पचहत्तर फीसद है। भारत में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान लगातार घट रहा है और चौंतीस से घट कर चौदह फीसद रह गया है और सेवाक्षेत्र का योगदान चौवन फीसद हो गया है। भारत जैसी विशाल आबादी की अर्थव्यवस्था को सिर्फ सेवाक्षेत्र के भरोसे नहीं चलाया जा सकता। हमें सकल घरेलू उत्पाद में कृषि के योगदान को संतुलित स्तर पर लाना ही होगा।

अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था के अडिग रहने का प्रमुख कारण खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता और बैंक या बीमा जैसे वित्तीय क्षेत्र पर सार्वजनिक स्वामित्व ही था।

भारत लगातार रोजगारविहीन विकास की ओर बढ़ रहा है और कार्यशील आबादी का तीस फीसद बेरोजगार है। युवकों को सुनिश्चित रोजगार के साथ कार्यस्थल पर सुरक्षित, सम्मानजनक वातावरण भी उपलब्ध कराना होगा। आवारा पूंजी के प्रति सजग और सतर्क रहना होगा। समाज में मितव्ययिता और सादगी को प्रोत्साहित करना होगा। राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के केंद्र में सामान्यजन को रखना होगा और उसके अनुरूप विदेशी कर्ज को स्वीकारना होगा।

सुरेश उपाध्याय, गीता नगर, इंदौर</strong>

 

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