रूस और यूक्रेन युद्ध को शुरू हुए 4 महीने से भी अधिक का समय बीत चुका है। इस युद्ध के कारण दुनिया भर में महंगाई का असर दिख रहा है, जिसके पीछे की वजह कच्चे तेल के साथ लगभग सभी ईंधनो और जिंसों के दामों में बढ़ोतरी होना है। इसका सीधा असर भारत जैसे ऊर्जा के बड़े आयातक देशों पर पड़ा है जो विदेशों से अपनी जरूरत का 80 फीसदी से अधिक कच्चा तेल विदेशों से आयात करते हैं।
दुनिया भर में मंदी का खतरा: रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद कच्चे तेल की कीमत लगातार 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बनी हुई है। एक समय तो यह है 140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। कच्चे तेल की बढ़ती हुई कीमत को देखते हुए दुनिया के बड़े विशेषज्ञों का मानना है कि महंगे ईंधन के कारण दुनिया भर वस्तुओं और सेवाओं की मांग में बड़ी कमी आ सकती है जो आगे बढ़कर एक मंदी का रूप ले सकता है। बता दें, कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतों के कारण दुनिया भर में महंगाई अपने चरम पर है अमेरिका में इस साल महंगाई ने अपने 40 साल का स्तर तोड़ दिया। वहीं, भारत में भी यह 7 फीसदी के पार पहुंच गई है।
वहीं, वैश्विक उथल- पुथल और मंदी की आहट के बीच ‘मासिक आर्थिक समीक्षा’ ( Monthly Economic Review) में वित्त मंत्रालय ने कहा. “हमें दोहरे घाटे की समस्या (Twin Deficit Problem) से सतर्क रहने की जरूरत हैं।”
क्या होता है Twin Deficit Problem?: जब देश ने एक साथ राजस्व घाटा और चालू खाते का घाटा बढ़ता है, उसे दोहरे घाटे की समस्या कहा जाता है, लेकिन इसे समझने से पहले जरूरी है कि आप राजस्व घाटे और चालू खाते में अंतर समझें।
सरल शब्दों में कहा जाए तो जब सरकार अपनी आय से ज्यादा खर्च करती है तो उसे राजस्व घाटा (Fiscal Deficit) कहा जाता है। इस घाटे की पूर्ति के सरकार बाजार से उधार लेती है। वहीं, जब कोई देश दूसरे देशों को बेचे गए उत्पादों और सेवाओं से अधिक अन्य देशों से खरीदता है, तो उसे चालू खाता घाटा कहते हैं।
रूस की ओर से यूक्रेन पर हमले के कारण दोनों देशों से होने वाली वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति में बड़े स्तर पर कमी आई हैं, जैसे दुनिया भर में जिंसों के दामों में तेजी से इजाफा हुआ है और दुनिया भर में महंगाई अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। वहीं, भारत सरकार ने लोगों को महंगाई से राहत देने के लिए पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी को कम किया है जिसके कारण सरकार की आय में करीब 85000 करोड रुपए की कमी आएगी। सरकार अपने वित्त वर्ष 23 के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य 6.9 फीसदी से चूक सकती है। राजकोषीय घाटा बढ़ने से चालू खाता और बढ़ सकता है, जिससे देश के सामने दोहरे घाटे की समस्या उत्पन्न हो जाएगी। वहीं, लगातार अन्य देशों से वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात की तुलना में अधिक आयात करने के कारण भारतीय मुद्रा पर भी दबाव देखने को मिल सकता है।