Telecom companies AGR dues: ब्रिटिश टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन को क्या अब भारत छोड़ना होगा? कंपनी पर भारत सरकार के बकाये करीब 53,000 करोड़ रुपये एजीआर को चुकाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के कड़े आदेश के बाद यह सवाल लगातार बना हुआ है। आइडिया के विलय के बाद वोडाफोन आइडिया कहलाने वाली कंपनी के अब दिवालिया घोषित होने की भी अटकलें हैं। 2007 में पूरे दमखम के साथ भारत में एंट्री करने वाली कंपनी आखिर कैसे इस हालात तक पहुंची, आइए जानते हैं पूरी कहानी…
हचिसन का अधिग्रहण कर की थी एंट्री: यह संयोग की ही बात है कि फरवरी के महीने में सुप्रीम कोर्ट ने उसे केंद्र सरकार के बकाये को चुकाने के लिए कड़ा आदेश दिया है और ऐसा न करने पर अवमानना की कार्रवाई के लिए तैयार रहने को कहा है और फरवरी 2007 में ही वोडाफोन ने भारत में एंट्री की थी। कंपनी ने उस दौर में भारत के मार्केट में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाली कंपनी हचिसन एस्सार का अधिग्रहण किया था। हचिसन भारत में हच ब्रैंड नेम के साथ कारोबार कर रही थी। वोडाफोन ने हचिसन में 67 पर्सेंट हिस्सेदारी 10.9 अरब रुपये में खरीदी थी। उसके बाद एयरटेल, आइडिया और बीएसएनएल के साथ वह मार्केट के बड़े प्लेयर्स में एक थी। उस वक्त वोडाफोन की एंट्री ऐसी ही थी, जैसे कुछ वक्त पहले जियो ने की थी।
धूमधाम से की एंट्री, आते ही मुकदमे में फंसी: वोडाफोन ने उस वक्त मार्केट में सिर्फ टेलीकॉम सर्विसेज ही नहीं शुरू कीं बल्कि फोन बेचने भी शुरू किए थे। हालांकि अपनी एंट्री के साथ ही वह एजीआर के मामले में फंस गई, जो विवाद 1999 से ही कंपनियों और सरकार के बीच चल रहा था। एजीआर एक तरह का रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल है, जिसके मुताबिक कंपनियों को अपनी कमाई का एक हिस्सा अडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू के तौर पर सरकार को देना होगा। हालांकि इसके कैलकुलेशन को लेकर कंपनियों और सरकार के बीच असहमति थी और अंत में यह मामला 2003 में कोर्ट में पहुंचा था। फिर अक्टूबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की कैलकुलेशन को सही करार दिया और उसके बाद जियो की एंट्री से पहले ही संकट में चल रहे वोडाफोन आइडिया को बड़ा झटका लगा।
कंपनी और सरकार की कैलकुलेशन में अंतर: सरकार के मुताबिक वोडाफोन आइडिया पर एजीआर के तौर पर उसका 54,000 करोड़ रुपया बकाया है। इसे चुकाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 21 फरवरी तक का समय दिया है। वोडाफोन का कहना है कि उस पर 23,000 करोड़ रुपये ही बकाया है और इसके लिए उसने 2,500 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है और शुक्रवार तक 1,000 करोड़ रुपये और देने का वादा करते हुए पूरी रकम चुकाने के लिए समय बढ़ाने की मांग की है। पहले ही संकट में जूझ रही टेलीकॉम कंपनियों के लिए हजारों करोड़ रुपये की यह देनदारी गले की फांस बन चुकी है।
वोडाफोन ने छोड़ा भारत तो होंगे क्या असर: अब सवाल यह है कि वोडाफोन आइडिया ने यदि कारोबार समेटा तो क्या होगा? मार्केट के जानकारों के मुताबिक वोडाफोन के भारत छोड़ने और कंपनी बंद होने से बैंकों के 25,000 करोड़ रुपये फंस जाएंगे जो पहले ही एनपीए के संकट से जूझ रहे हैं। इसके अलावा सीधे तौर पर 13,000 से ज्यादा लोगों को अपनी नौकरी गंवानी होगी, जो वोडाफोन आइडिया के पेरोल पर काम करते हैं। यही नहीं इससे विदेशी निवेश को आकर्षित करने की सरकार की मुहिम को भी झटका लगेगा। बैंकों के संकट में फंसने से आर्थिक माहौल भी खराब होने की आशंका होगी।