केंद्रीय बजट 2026-27 में सरकार को प्रत्यक्ष कर आधार बढ़ाने, निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने, आर्थिक वृद्धि को तेज करने और रोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए ऊंची प्रत्यक्ष कर दरों को फिलहाल स्थिर बनाए रखने की जरूरत है। एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
भारत की नयी कराधान विचारधारा का स्वरूप: सरलीकरण, संतुलन एवं वृद्धि’ नाम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) 2.0 के तहत हाल के सुधारों से यह स्पष्ट हुआ है कि मजबूत रेवेन्यू ग्रोथ के साथ-साथ टैक्स व्यवस्था का सरलीकरण एवं टैक्स दरों में संतुलन संभव है। इससे लंबे समय से चली आ रही उस सोच को चुनौती मिलती है कि टैक्स कलेक्शन को बढ़ाने के लिए टैक्स की दरें बढ़ाना जरूरी होता है।
रिसर्च इंस्टीट्यूट ‘थिंक चेंज फोरम’ (TCF) द्वारा बुधवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, ‘भारत जल्द केंद्रीय बजट पेश करने वाला है और इसमें लिए जाने वाले फैसले यह तय करेंगे कि कराधान दीर्घकालिक आर्थिक विस्तार के लिए उत्प्रेरक बनता है या फिर महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाने वाला कारक।’
एक साल में नहीं मिलेगी ग्रेच्युटी? 5 साल वाले पुराने नियम पर टिकी हुई है कंपनियां
रिपोर्ट में नीति-निर्माताओं के लिए छह सूत्रीय सुझाव दिए गए हैं-
उच्च कर दरों को स्थिर रखा जाए
कर दरें बढ़ाने के बजाय उन्हें स्थिर रखकर भरोसेमंद नीतिगत माहौल बनाया जाए।
प्रत्यक्ष कर आधार का विस्तार किया जाए
कर दर बढ़ाने के बजाय टेक्नोलॉजी और बेहतर अनुपालन के जरिए अधिक लोगों को टैक्स नेटवर्क में लाया जाए।
MRP आधारित कराधान से बचा जाए
मुआवजा उपकर खत्म होने के बाद अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) के आधार पर टैक्स लगाने से परहेज किया जाए।
GST इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) श्रृंखला पूरी की जाए
जीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट की पूरी और निर्बाध श्रृंखला सुनिश्चित की जाए।
मुनाफे के उत्पादक पुनर्निवेश को बढ़ावा दिया जाए
कंपनियों को अपने लाभ को उत्पादन और निवेश में दोबारा लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
समानांतर अर्थव्यवस्था पर सख्ती की जाए
तस्करी और अवैध कारोबार समेत समानांतर अर्थव्यवस्था के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
बजट में दीर्घकालिक नीतिगत स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अर्थशास्त्र के संतुलन सिद्धांत के अनुरूप उच्च प्रत्यक्ष कर दरों को स्थिर रखने की प्रतिबद्धता जतानी चाहिए और राजस्व जुटाने का जोर दरें बढ़ाने के बजाय कर आधार के विस्तार पर होना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि कर-GDP अनुपात में सुधार के लिए प्रत्यक्ष कर आधार का विस्तार करना अत्यंत आवश्यक है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 140 करोड़ की आबादी में केवल 2.5 से तीन करोड़ प्रभावी करदाता हैं, ऐसे में बजट को दरें बढ़ाने के बजाय GST, आयकर तथा उच्च मूल्य उपभोग से जुड़े आंकड़ों को एकीकृत कर टेक्नॉलाजी आधारित कर आधार विस्तार को प्राथमिकता देनी चाहिए।
कर-जीडीपी अनुपात
कर-जीडीपी अनुपात, यह मापने का पैमाना है कि किसी देश के कुल राजस्व (GDP) का कितना हिस्सा सरकार कर के रूप में इकट्ठा करती है। रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ते निवेश विरोधाभास को भी रेखांकित किया गया है। इसमें कहा गया कि पिछले एक दशक में कंपनियों की लाभप्रदता में सुधार हुआ है लेकिन निवेश-से-जीडीपी अनुपात 2011 से पहले के उच्च स्तर से काफी नीचे बना हुआ है जिससे संकेत मिलता है कि मुनाफा उत्पादक क्षमता के बजाय वित्तीय परिसंपत्तियों में लगाया जा रहा है।
निवेश-से-जीडीपी अनुपात
निवेश-से-जीडीपी अनुपात, यह मापता है कि किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का कितना प्रतिशत नए निवेश (जैसे मशीनरी, भवन, बुनियादी ढांचा) में लगाया जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते मुनाफे के बावजूद निवेश में ठहराव को देखते हुए बजट में लक्षित कर प्रोत्साहनों के जरिये कॉरपोरेट आय को वित्तीय निवेशों के बजाय विनिर्माण, अनुसंधान एवं विकास (R&D) और रोजगार सृजन करने वाली परिसंपत्तियों की ओर प्रवाहित किया जाना चाहिए।
बजट में पेट्रोलियम, बिजली एवं अन्य गैर-प्रतिबंधित वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए चरणबद्ध खाके की रूपरेखा भी तैयार की जानी चाहिए ताकि कर तटस्थता बहाल (Restore Tax Neutrality) हो सके एवं उद्योग पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ को कम किया जा सके।
इसमें कहा गया कि आगामी बजट में तस्करी, अवैध व्यापार और कर चोरी के खिलाफ प्रवर्तन को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि अनुपालन न करने पर अनुपालन से अधिक लागत आए और ईमानदार करदाताओं को दंडित न किया जाए।
रिपोर्ट में एक विशिष्ट भारतीय कराधान विचारधारा की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, जो पारंपरिक भारतीय ज्ञान को आधुनिक आर्थिक सोच के साथ जोड़ते हुए अल्पकालिक रेवेन्यू वसूली के बजाय संतुलन, निष्पक्षता, अनुपालन एवं वृद्धि को प्राथमिकता दे।
भाषा के इनपुट के साथ
