देश के सबसे अमीर मंदिर कहे जाने वाले तिरुपति के ट्रस्ट ने केंद्र सरकार से 51 करोड़ रुपये के 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बदलने की मांग की है। नवंबर, 2016 में केंद्र सरकार की ओर से की गई नोटबंदी के साढ़े तीन साल बीत जाने के बाद मंदिर ट्रस्ट ने सरकार से यह मांग की है। सोमवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से नई दिल्ली में मुलाकात कर तिरुपति तिरुमला देवस्थानम ट्रस्ट के चेयरपर्सन वाईवी सुब्बा रेड्डी ने यह मांग की। रेड्डी ने वित्त मंत्री से कहा कि कोरोना के संकट के चलते मंदिर की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं है और उसे देखते हुए इन नोटों को बदला जाना चाहिए।
हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत करते हुए ट्रस्ट के मुखिया रेड्डी ने कहा कि मैं वित्त मंत्री को बताया कि श्रद्धालुओं ने दानपात्र में यह रकम आस्था के साथ डाली है और हम उनकी ओर से श्रद्धा के साथ दी गई रकम को नजरअंदाज नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से की गई नोटबंदी के बाद मंदिर प्रशासन ने पुराने नोटों को लेना बंद कर दिया था। हालांकि श्रद्धालु मंदिर की हुंडी यानी दानपात्र में जो रकम डाल गए हैं, उसमें मंदिर का कोई दखल नहीं होता। उन्होंने कहा कि आरबीआई की ओर से नोटों को बदलने की तारीख खत्म हो जाने के बाद भी दान पात्र में यह रकम आई है।
रेड्डी ने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस मसले का हल निकाले जाने का भरोसा दिलाया है। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री ने केंद्रीय बैंक के समक्ष इस मुद्दे को उठाने की बात कही है और कहा है कि इस मामले में जो भी बेहतर हो सकेगा, वह किया जाएगा। गौरतलब है कि इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने देश के एक अन्य समृद्ध मंदिर पद्मनाभ स्वामी की समिति में त्रावणकोर के राजवंश को अधिकार देने का फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मंदिर पर राजवंश के अधिकार को मान्यता प्रदान करते हुए हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है।
कहा जाता है कि भगवान पद्मनाभ के इस भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण 18वीं सदी में इसके मौजूदा स्वरूप में त्रावणकोर शाही परिवार ने कराया था। इसी शाही परिवार ने 1947 में भारतीय संघ में विलय से पहले दक्षिणी केरल और उससे लगे तमिलनाडु के कुछ भागों पर शासन किया था। स्वतंत्रता के बाद भी मंदिर का प्रबंधन राजपरिवार के नियंत्रण वाले ट्रस्ट के हाथों में ही था।

