राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले के जरिए भारत की आर्थिक नीतियों को सामने रखा। भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत प्रदर्शन का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि चुनौतीपूर्ण वैश्विक हालात के बावजूद अगले दो दशक में इसमें 10 हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की क्षमता है। 2014-15 में 7.2 फीसद वृद्धि हासिल कर देश की अर्थव्यवस्था फिर से तेजी की राह पर चल पड़ी।

राष्ट्रपति ने प्रगति मैदान में 35वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला-2015 (आइआइटीएफ) का उद्घाटन करते हुए केंद्र सरकार की कई प्रमुख योजनाओं का जिक्र किया जिनमें ‘मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान और स्टार्ट अप इंडिया’ शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यह भारत में बेहतर अवसरों का समय है। सरकार की हाल की कई पहलों से पहले ही परिणाम मिलने शुरू हो गए हैं और इसका कई प्रमुख क्षेत्रों में सकारात्मक असर दिखा है।

राष्ट्रपति ने कहा कि बहुपक्षीय संगठनों में समान विचारधारा वाले देशों के साथ भारत के बढ़ते संवाद के बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता की देश की दावेदारी और भी मजबूत होती जा रही है। भारत आर्कटिक परिषद और प्रशांत क्षेत्र गठबंधन से लेकर सुरक्षा परिषद तक विविध मंचों पर बढ़ी हुई भूमिका निभाने के लिए संयुक्त राष्ट्र समेत बहुपक्षीय संगठनों में समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है। भारत का सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का वैध दावा है।

प्रणब ने कहा कि हम आज 2,100 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था हैं और यदि विनिर्माण और नवप्रवर्तन को प्रोत्साहन दिया जाता है तो अगले दो दशक में हम दस हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों के दौरान बने चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक परिदृश्य का मुकाबला करने में हमारी अर्थव्यवस्था सक्षम रही है। दुनिया की कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में छाई आर्थिक सुस्ती से भारत काफी हद तक बचा रहा। राष्ट्रपति ने कहा कि 2012-13 को छोड़कर जब वैश्विक आर्थिक वृद्धि पांच फीसद से नीचे चली गई थी, भारतीय अर्थव्यवस्था ने लगातार अपनी मजबूती दिखाई है। इसके और बेहतर होने की उम्मीद है, क्योंकि दूसरे वृहद आर्थिक संकेतकों में काफी सुधार दिखाई दे रहा है। मुद्रास्फीति नियंत्रण में बनी हुई है और औद्योगिक प्रदर्शन में भी सुधार के संकेत मिल रहे हैं।

उन्होंने कहा कि वित्तीय मजबूती के उपायों पर अमल किया गया है और 2017-18 तक भारत तीन फीसद राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल कर लेगा। उन्होंने कहा कि पिछले साल उत्साहवर्धक निर्यात कारोबार नहीं होने के बावजूद बाहरी क्षेत्र को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं है। वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती का असर घटते आयात के रूप में भी दिख रहा है और तेल आयात पर हमारी निर्भरता काफी कम हुई है। देश का चालू खाते का घाटा (कैड) 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मुकाबले 1.7 फीसद से कम होकर 2014-15 में जीडीपी का 1.4 फीसद रह गया।

राष्ट्रपति ने कहा कि केवल पिछले साल ही वित्तीय समावेश के प्रयासों के तहत जनधन योजना में 14 करोड़ बैंक खाते खोले गए। आइआइटीएफ ने व्यापार संवर्द्धन के क्षेत्र में अच्छा काम किया है और यह विभिन्न देशों को एक मंच पर लाने की दिशा में अहम आयोजन बन गया है। दक्षेस देशों की कंपनियों से काफी संख्या में भागीदार को देखकर मुझे प्रसन्नता हुई है। हमारे दक्षिण एशियाई पड़ोसी देश हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता हैं। इसके साथ ही एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों में नए निर्यात बाजारों पर ध्यान देते हुए बाहरी परिवेश से उत्पन्न चुनौती का सामाना किया जा सकता है।

प्रणब ने कहा कि यह देखकर अच्छा लगा कि 35वें आइआइटीएफ में अफगानिस्तान जो कि दक्षेस का आठवां सदस्य बना है, भागीदार देश के तौर पर भाग ले रहा है और बांग्लादेश जो कि दक्षेस का संस्थापक सदस्य देश है उसे फोकस देश बनाया गया है। आइआइटीएफ में देश विदेश के उद्यमियों और निवेशकों को अपने उत्पादों और नई पहलों को प्रदर्शित करने का बेहतर अवसर मिलता है। इस मेले का आयोजन हर साल 14 से 27 नवंबर के दौरान किया जाता है।