Salary cut due to coronavirus lockdown: कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए हुए लॉकडाउन के दौरान भी कंपनियों और लघु उद्योंगो को कर्मचारियों को पूरी सैलरी देने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वे कर्मचारियों को सैलरी न देने पर अगले सप्ताह तक कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करें। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में जवाब देने के लिए एक सप्ताह का वक्त मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट ने लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका समेत कई अर्जियों पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है। निजी संस्थानों ने अपनी अर्जी में कहा था कि गृह मंत्रालय का यह आदेश एकतरफा है और इसमें इस बात को नजरअंदाज किया गया है कि इससे कंपनियों की वित्तीय सेहत पर क्या असर होगा। य़ही नहीं अपनी अर्जी में निजी कंपनियों ने तर्क दिया था कि सरकार नियोक्ताओं पर पूरा बोझ डाल रही है, लेकिन वर्कर्स के हितों के लिए उसकी ओर से कोई प्रयास नहीं किए गए।

अर्जी में कहा गया था कि नियोक्ता को यह अधिकार है कि वह बिना काम के भुगतान न करे। निजी संस्थानों ने शीर्ष अदालत में पिछली सुनवाई के दौरान दलील दी थी कि प्रोविडेंट फंड में ऐसी बड़ी राशि पड़ी है, जिसका कोई दावेदार नहीं है। इसके अलावा ईएसआईसी की भी बड़ी रकम बैंकों के पास जमा है। यदि सरकार चाहे तो इस अवधि में वर्कर्स की मदद के लिए वह इस राशि का इस्तेमाल कर सकती है।

गृह मंत्रालय ने आदेश दिया था कि लॉकडाउन के दौरान निजी कंपनियों को अपने कर्मचारियों को पूरी सैलरी देनी होगी। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने भी पहली बार लॉकडाउन का ऐलान करने के दौरान कंपनियों से अपील की थी कि वे कर्मचारियों को इस दौरान नौकरी से न निकालें और न ही सैलरी में कटौती करें। इसके बाद 29 मार्च को गृह मंत्रालय ने इस संबंध में सर्कुलर जारी किया था। यही नहीं इस आदेश में कहा गया था कि यदि कोई कंपनी पूरी सैलरी नहीं देती है तो फिर उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना होगा।