दिल्ली लैंड एंड फाइनेंस (DLF) आज देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों में शामिल हैं, लेकिन आपको जानकारी हैरानी होगी कि डीएलएफ के चेयरमैन कुशल पाल सिंह के श्वसुर और संस्थापक चौधरी राघवेन्द्र सिंह ने बंटवारे से एक साल पहले ही यह सूंघ लिया कि आजादी के बाद देश में बड़ी संख्या में लोग विस्थापित होकर पश्चिमी पंजाब से दिल्ली की तरफ आएंगे। इस मौके को देखते हुए सिंह ने पंजाब सरकार में ट्रांसपोर्ट ऑफिसर की नौकरी छोड़कर 1946 में एक रियल एस्टेट कंपनी की स्थापना की जिसका नाम डीएलएफ रखा गया।
कुशल पाल सिंह कहते हैं “उस वक्त दिल्ली एक दुनिया के सामने एक सोता हुआ महानगर था। मुश्किल से किसी घर की कोई मांग थी। जमीन खरीदने वाला कोई नहीं था और किसी ने भी इस विस्थापन का अनुमान नहीं लगाया था।” वहीं अपने श्वसुर के बारे में बताया कि “वह एक किसान परिवार के आते थे और उनके लिए किसानों को जमीन अधिग्रहण करने के लिए मनाना आसान था।”
दिल्ली में बनाई कई कॉलोनियां: डीएलएफ ने आजादी के बाद से ही दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में रियल एस्टेट सेक्टर में कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। कंपनी की ओर से प्रवासियों के लिए दिल्ली के उत्तर में मॉडल टाउन कॉलोनी बसाई गयी। फिर उसके बाद पंजाब से आने वाले उच्च वर्ग के लोगों को ध्यान में रखते हुए ग्रेटर कैलाश-1 और ग्रेटर कैलाश-2 की स्थापना की गई। सरकार की ओर से दिल्ली डेवलपमेंट एक्ट 1957 की मदद से भूमि विकास को सरकार का विशेष अधिकार बना दिया गया, लेकिन तब तक डीएलएफ दिल्ली में 22 से अधिक कॉलोनियां विकसित कर चुकी थी।
कैसे जीतते हैं किसानों का भरोसा: डीएलएफ को आज देश में दिल्ली के निकट मिलिनियम शहर गुरुग्राम को विकसित करने के लिए जाना जाता है, जिसके लिए कंपनी की ओर से हजारों एकड़ जगह का किसानों से अधिग्रहण किया गया है। वहीं, जमीन खरीदने पर कुशल पाल सिंह कहते हैं। इसके लिए आपको किसानों का भरोसा जीतना जरुरी होता है। कई बार उन्हें किसानों का भरोसा जीतने के लिए हफ्तों का समय लग जाता है। जमीन अधिग्रहण करने के बाद कंपनी किसानों के बच्चों नौकरी और उनकी बेटियों की शादी तक कराने का भरोसा देती है।
डीएलएफ का कारोबार देशभर के 20 राज्यों में फैला हुआ है। कंपनी के पास देश के 31 शहरों में करीब 10,225 एकड़ जमीन मौजूद है।