Adani Power Project in Sri lanka:अडानी ग्रुप के लिए एक बार फिर बुरी खबर आ गई है। श्री लंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा डिसनायके की अध्यक्षता वीली कैबिनेट ने पिछले राष्ट्रपति राष्ट्रपति विक्रमसिंघे द्वारा जून 2024 में अडानी ग्रुप केो दिए दो पावर प्लांट के फैसले को पलट दिया है। DailyFT के मुताबिक,पूर्व राष्ट्रपति ने मन्नार और पूनेरिन में 484 MW के दो विवादित पावर प्लांट Adani Green Energy SL Ltd को दे दिए थे।

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने अडानी ग्रीन एनर्जी को प्रोजेक्ट सौंपा था। और कंपनी श्री लंका में 1 बिलियन डॉलर (करीब 83.5 बिलियन रुपये) निवेश करने की योजना बना रही थी। निवेश को 484MW की संयुक्त क्षमता वाले दो विंड फार्म्स स्थापित करने की दिशा में किया जाना था। श्री लंका के उत्तर में मन्नार शहर और पूनेरिन गांव में स्थित विंड फार्म में 740 मिलियन डॉलर के निवेश किया जाना है। यह परियोजना 2026 के मध्य तक पूरी होनी थी।

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बाद में, इस परियोजना को कई आधारों पर चुनौती दी गई और जब स्थानीय आवेदकों ने 4.88 सेंट की पेशकश की तो 8.26 अमेरिकी सेंट प्रति किलोवाट घंटे की मनमानी कीमत पर चिंता जताई गई।

इस प्रोजेक्ट को वन्यजीव और प्रकृति संरक्षण सोसायटी और Environmental Foundation Ltd समेत कई पर्यावरण संगठनों के विरोध का भी सामना करना पड़ा, जिन्होंने पर्यावरण प्रभाव आकलन में कमियों के कारण परियोजना का विरोध किया। क्योंकि मन्नार प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण निवास स्थान है। स्थानीय उद्योगों और आजीविका को होने वाले नुकसान के कारण स्थानीय समुदाय, जिसका प्रतिनिधित्व मन्नार के बिशप ने भी किया, उन्होंने भी इस परियोजना का विरोध किया।

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DailyFT की रिपोर्ट में बताया गया है कि मौजूदा राष्ट्रपति ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान इस डील को रद्द करने और श्री लंका में विंड पावर डिवेलप करने के लिए इंटरनेशनल टेंडर्स बुलाने की शपथ ली थी। उसी के अनुरूप, 30 दिसंबर को कैबिनेट ने “अडानी के प्रस्ताव” पर तत्कालीन ऊर्जा और ऊर्जा मंत्री द्वारा प्रस्तुत कैबिनेट निर्णय दिनांक 2024-05-06 क्रमांक सीपी संख्या 24/0850/621/047 को रद्द करने का निर्णय लिया। मन्नार और पूनरीन में 484 मेगावाट के पवन ऊर्जा संयंत्रों के विकास के लिए ग्रीन एनर्जी एसएल लिमिटेड।

जैव विविधता वैज्ञानिक (Biodiversity scientist) रोहन पेथियागोडा, जिन्होंने पिछले साल इस प्रस्ताव के खिलाफ अथक संघर्ष किया था,उन्होंने डेलीएफटी को बताया, “पर्यावरण अखंडता और वित्तीय पारदर्शिता में रुचि रखने वाला हर कोई इस बात का जश्न मनाएगा कि राष्ट्रपति डिसनायके ने श्रीलंका के लोगों को धोखा देने की इस साजिश को हराने के अपने वादे को पूरा किया है।”

उन्होंने कहा, ‘व्यक्तिगत रूप से, मैं इस फैसले से खुश हूं। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। सरकार को अब रिश्वत आयोग (Bribery Commission) को सभी संबंधित फाइलें जारी करनी चाहिए और इस बात की पूरी जांच का अनुरोध करना चाहिए कि यह घोटाला सबसे पहले कैसे किया गया था। इसके पीछे का मास्टरमाइंड कौन था? याद रखें, पिछली सरकार अडानी से स्थानीय स्तर पर निर्धारित कीमत से 70 प्रतिशत अधिक दर पर बिजली खरीदने पर सहमत हुई थी। वह 70 प्रतिशत किसकी जेब में जा रहा था? यह अरबों डॉलर तक जुड़ गया।’