दिवालिया कानून के तहत देश में 19 मार्च, 2019 तक तकरीबन 75 हजार करोड़ रुपए बरामद कर लिए गए। साल 2018-19 में 1.75 लाख करोड़ रुपए के 94 बड़े नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) खातों का हल करने में बैंकों को 75,000 करोड़ रुपए यानी कि 43 फीसदी रकम ही मिली है। इन मामलों में बैकों को अपने दावों से 57 प्रतिशत कम राशि हासिल हुई है। यें बातें हाल ही में एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एस्सोचैम) और क्रिसिल की संयुक्त रिपोर्ट में सामने आई हैं। रिपोर्ट में इसके साथ ही कहा गया कि संपत्तियों से जुड़ी इस प्रकार की बरामदगी की प्रक्रिया पर देश में ‘अभी भी काम जारी है’।
यह आंकड़े इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस महीने दिवाला कानून ने तीसरे साल में कदम रखा है। मार्च तक विभिन्न दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता न्यायाधिकरणों के पास 1,143 मामले लंबित थे और इनमें से 32 प्रतिशत मामले 270 दिन से अधिक समय से लंबित हैं। हालांकि, रिपोर्ट में 43 फीसदी की वसूली दर को ‘ठीक-ठाक’ बताया गया है।
दरअसल, दिवालियापन प्रक्रिया के तहत इन 94 मामलों में कर्जदारों से वसूली की दर 22 फीसदी या उससे भी कम के होने का अनुमान था। ऐसे में ‘स्ट्रेंथिंग द कोड’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया- 94 मामलों में कुल 43 फीसदी की सम्माजनक वसूली दर रही। कॉरपोरेट इन्सॉल्वेंसी रेस्योल्यूशन प्रोसेस (सीआईआरपी) के तहत 31 मार्च, 2019 तक एक लाख 75 हजार करोड़ रुपए के कुल क्लेम में से 75 हजार करोड़ रुपए वसूल लिए गए।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इन 94 मामलों को निपटाने के लिए औसतन समयसीमा 324 दिन थी। रिपोर्ट में इसके अलावा संकेत दिए गए कि एनसीएलटी और एनसीएलएटी के इंफ्रास्ट्रक्चर और इन दोनों प्लैटफॉर्म्स के डिजिटाइजेशन में सुधार आएगा। कंपनियों को पुनःजीवित और अच्छी स्थिति में लाने के लिए कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (सीओसी) और पेशेवर लोगों के साथ मिलकर गतिशीलता के साथ काम करना होगा। यही नहीं, समय समय पर आने वाली पेशेवर चुनौतियों से निपटने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाने होंगे।
रोल्टा दिवाला प्रक्रिया से बाहर, न्यायाधिकरण ने यूबीआई की याचिका खारिज कीः साफ्टवेयर कंपनी रोल्टा इंडिया ऋण शोधन कार्यवाही से बाहर आ गयी है। समय पर कर्ज की किस्त नहीं चुकाने वाली वह पहली कंपनी है, जो दो अप्रैल के उच्चतम न्यायालय के आदेश के आधार पर इस प्रक्रिया से बाहर हुई है। राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की मुंबई पीठ ने इस संदर्भ में यूनियन बैंक की याचिका खारिज कर दी। एनसीएलटी की मुंबई पीठ ने सार्वजनिक क्षेत्र के यूनियन बैंक आफ इंडिया (यूबीआई) की कंपनी के खिलाफ ऋण शोधन अर्जी खारिज कर दी। बैंक ने कंपनी पर 1,200 करोड़ रुपये के दावे को लेकर आवेदन किया था।
राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण की मुंबई पीठ ने कहा कि यूनियन बैंक की ऋण शोधन याचिका स्वीकार्य करने लायक नहीं है। उच्चतम न्यायालय द्वारा फंसे कर्ज की पहचान को लेकर केंद्रीय बैंक के नये नियम को दो अप्रैल को खारिज किये जाने के बाद एनसीएलटी ने यह कहा। न्यायमूर्ति वीपी सिंह और न्यायमूर्ति आर दुरई स्वामी की पीठ ने कहा कि यूनियन बैंक ने 12 फरवरी 2018 के रिजर्व बैंक के परिपत्र के आधार पर न्यायाधिकरण से संपर्क किया था। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इस सर्कुलर को खारिज कर दिया था। (भाषा इनपुट्स के साथ)
