देश की राजधानी में प्रदूषण के बढ़ते स्तर से निपटने के उपायों के रूप में सुप्रीम कोर्ट ने 2000 सीसी से अधिक क्षमता के इंजन वाली डीजल एसयूवी और कारों के दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पंजीकरण पर अगले साल 31 मार्च तक के लिए बुधवार को प्रतिबंध लगा दिया। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दिल्ली में उन वाणिज्यिक वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया है जिनका गंतव्य राजधानी नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने दिल्ली की सड़कों का इस्तेमाल करने वाले वाणिज्यिक ट्रकों पर लगाया गया पर्यावरण हर्जाना शुल्क बढ़ाकर दोगुना कर दिया है।

पीठ ने स्पष्ट किया कि 2005 से पहले के पंजीकृत वाणिज्यिक वाहनों को दिल्ली में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी। अदालत ने प्रदूषण के चिंताजनक स्तर को देखते हुए नौ अक्तूबर को राजधानी में प्रवेश करने वाले वाणिज्यिक वाहनों पर एक नवंबर से सात सौ रुपए और 1300 रुपए की दर से पर्यावरण हर्जाना शुल्क लगाने का आदेश दिया था। अदालत ने बुधवार को इस शुल्क को बढ़कार 1400 रुपए और 2600 रुपए कर दिया है। अब हल्के वाहनों को 1400 रुपए और तीन एक्सेल वाहनों को 2600 रुपए शुल्क देना होगा। यह टोल टैक्स के अतिरिक्त है।

पीठ ने यह भी कहा कि फिलहाल उन वाणिज्यिक वाहनों को दिल्ली में प्रवेश की इजाजत नहीं होगी जिनका गंतव्य राजधानी नहीं है। ऐसे वाहनों को राष्ट्रीय राजमार्ग आठ और राजमार्ग एक के रास्ते दिल्ली में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अब सिर्फ सीएनजी टैक्सियों के परिचालन की ही इजाजत होगी। अदालत ने स्पष्ट किया कि डीजल वाहनों के पंजीकरण पर लगाया गया प्रतिबंध एक जनवरी से 31 मार्च 2016 तक प्रभावी रहेगा। लेकिन 2000 सीसी से कम इंजन की क्षमता वाली यात्री कारें इसमें शामिल नहीं हैं।

जजों ने पर्यावरणविद वकील महेश चंद्र मेहता की 1984 से लंबित जनहित याचिका में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे के इस कथन से सहमति व्यक्त की कि दिल्ली की हवा को प्रदूषित करने में डीजल गाड़ियों की बहुत अधिक भ्ूामिका रही है। अदालत ने प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि नगर निगम का कचरा जलाने और निर्माण स्थलों की गतिविधियों पर सख्ती से पाबंदियां लगाई जाएं।

इससे पहले अदालत ने दिल्ली में तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण को बहुत खतरनाक बताते हुए इससे निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की वकालत की थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि असहनीय स्तर तक पहुंच रहे प्रदूषण स्तर की वजह से दिल्ली दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहर के रूप में नाम बदनाम हो रही है।