रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने शनिवार सरकार के राजकोषीय प्रबंधन, मौद्रिक नीति सुधार और ग्रामीण रोजगार पैदा करने की कोशिशों का समर्थन किया। मगर उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कर्ज अदायगी नहीं हो पानेवाले मामलों में अधिकारीगण वास्तविक जोखिम उठाने वालों और अनियमितताएं करने वालों के बीच फर्क करें।

‘आमतौर पर कर्ज अदायगी नहीं हो पाने के विभिन्न कारण होते हैं। अगर आप यह कहते हैं कि कर्ज अदायगी नहीं होने वाला हर मामला अपराध है और इसकी पूरी तरह से जांच होनी चाहिए, तो मैं बता दूं कि आप देश में ऋण देनदारी और उद्यमिता दोनों को सीधे सीधे खत्म कर रहे हैं। मुझे लगता कि हमें यह स्थिति नहीं आने देनी चाहिए। यह उचित नहीं है।’ नई दिल्ली में प्रथम रामनाथ गोयनका व्याख्यानमाला में अपने संबोधन में राजन ने कहा।

‘वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत’ विषय पर अपने संबोधन में राजन ने कहा कि बैंकिंग नियामक को मार्च 2017 तक स्पष्ट बैलेंस सीट के प्रावधान पर जोर देना चाहिए, ‘स्थायित्व के एजंडे के आखिरी दौर में बैंकिंग क्षेत्र में ‘स्ट्रेस्ड असेट्स’ (फंसी हुई पूंजी) को खत्म करना चाहिए ताकि बैंक पुन: कर्ज देने की स्थिति में हों। समस्या यह है कि अतीत में बैंकों के पास वसूली या कर्जदारों पर बाकी पेज 8 पर उङ्मल्ल३्र४ी ३ङ्म स्रँी 8
कर्ज चुकाने के लिए जोर डालने की पर्याप्त ताकत नहीं होती थी। हमारा जोर मार्च 2017 तक बैंकों द्वारा स्पष्ट बैलेंस सीट का प्रावधान करने पर होगा।

उन्होंने कहा कि ‘दीवाला कार्यपद्धति’ की अनुपस्थिति के चलते उनका पहला काम था कि अदालत के बाहर ‘समाधान व्यवस्था’ तैयार की जाए। इसके बाद बैंक के साथ काम किया ताकि वह मान्यता दे और बकाया कर्ज की वसूली हो। देश में ऊंची विकास दर को लेकर बहस चलने और चिंता जताने को लेकर राजन ने घरेलू और विदेशी निवेशकों की बेचैनी को शांत किया और सरकार के समर्थन में नजर आए। दुनिया में कई अर्थ व्यवस्थाओं के लड़खड़ाने को लेकर राजन का कहना है कि वे ऊंची विकास दर पाने के लक्ष्य में व्यापक आर्थिक स्थिरता की ओर ध्यान नहीं देते,‘व्यापक आर्थिक स्थिरता की कीमत पर विकास के लिए जोर ना दें।’ उन्होंने भारत की व्यापक आर्थिक स्थिरता पर अडिग रहने के निर्णय को रेखांकित करते हुए इसे सही ठहराया।

राजन ने वर्तमान चुनौतीपूर्ण आर्थिक परिवेश में भारत की ऊंची विकास दर की सराहना की और देश में ऐसा आधार बनाने पर जोर दिया जिससे यह कायम रहे। ‘मेरा मानना है कि हम लोगों की बातों को गलत साबित करने की प्रक्रिया में हैं। असत्कारशील वैश्विक अर्थव्यवस्था और देश में लगातार दो साल सूखा पड़ने के मद्देनजर हमारा ध्यान व्यापक आर्थिक स्थायित्व की ओर है। यह बताता है कि उभरती हुई समकक्ष अर्थव्यवस्थाओं में हमारी विकास दर सात फीसद से ऊपर, नीची महंगाई दर और चालू खाता घाटा कम क्यों है। हमें अब इसी आधार को मजबूत करना है।’

राजन ने 2016-17 के बजट का समर्थन किया जिसमें वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राजकोषीय विवेक का रास्ता चुना,‘हालिया केंद्रीय बजट में राजकोषीय विवेक पर जोर देने के साथ ही अतीत के वादों का पालन किया गया है। यहां तक कि पूंजी खर्च के लिए संसाधनों का आवंटन और ढांचागत सुधार के साथ ही विशेष तौर पर कृषि को ध्यान में रखा गया है।

ऐसे दौर में, जब अंतरराष्ट्रीय निवेशक अवसाद में हैं और सभी देश अतिरिक्त विकास के लिए प्रयासरत हैं, राजन ने कहा देश में मजबूत, स्थिर और निरंतर विकास का परिवेश बनना चाहिए। और इसके लिए मजबूत व्यापक आर्थिक स्थायित्व की जरूरत है। हालांकि फाइनेंस बिल पर विवाद और मौद्रिक नीति समिति के निर्णय के बारे में राजन ने प्रसन्नता जताते हुए कहा,‘समिति को निर्णय सौंपना अर्थव्यवस्था के हित में है। एक व्यक्ति के बजाय समिति बेहतर तरीके से विभिन्न विचारों को एकत्र कर सकती है। समिति से आपको अधिक निरंतरता और कम अनुचित दबाव मिलता है। सरकार के मौद्रिक सुधार सांकेतिक उपलब्धियों के रूप में नजर आएंगे, जिनमें मेरा विश्वास है।’

कमजोर व्यापार और निर्यात पर राजन का कहना है कि भारत अकेला नहीं पड़ा है और भारतीय वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात उभरते हुए बाजार का आइना है। उचित विनिमय दर पर उठनेवाले सवालों और निर्यात बढ़ाने हेतु रुपए के अवमूल्यन के सुझावों पर रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा,‘हमारे लिए उचित विनिमय दर ना तो कम है ना ज्यादा। यह सही है।’

निर्यात के लिहाज से विनिमय दर को उचित ठहराते हुए राजन ने कहा कि निर्यात बढ़ाने के लिए,‘बुनियादी ढांचा तैयार कर उत्पादकता बढ़ाई जाए। स्कूल, कॉलेज, व्यवसाय प्रशिक्षण देकर मानवीय पूंजी विकसित की जाए। कारोबार के नियमों और करों को सरल किए जाएं और वित्तीय सुगमता बढ़ाई जाए। सौभाग्य से सरकार इन सभी चीजों पर ध्यान दे रही है।’

डॉलर की तुलना में रुपए के अवमू्ल्यन पर चलनेवाली बहस के बारे में राजन ने कहा कि भारतीय मुद्रा अपने समकक्ष देशों के मुकाबले स्थिर है और इस बारे में चिंता नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि पूंजी का प्रवाह मजबूत है। विदेशी निवेश को लेकर उन्होंने कहा कि इस साल रेकॉर्ड प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है। 2008-09 में यह 41.7 बिलियन डॉलर (साल में सबसे ज्यादा) था। अप्रैल 2015 जनवरी से 2016 के दस महीनों में यह 38.7 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया है। राजन ने कहा कि सेंट्रल बैंक का लक्ष्य रुपए की विनिमय दर के बजाय उतार-चढ़ाव में हस्तक्षेप कर सरकारी बांडों में निवेश सीमा बढ़ाने की ओर होगा।

ऐसे दौर में जब विकसित अर्थव्यवस्थाएं या जी-7 में दबदबा रखनेवाले देश दुनिया का एजंडा और संवाद तय कर रहे हैं, भारत ने कई वैश्विक मंचों पर अपना स्थान बनाया है। इसे और ताकतवर बनाने के लिए प्रभावशाली ढंग से कल्पनाओं और अवधारणाओं को विकसित करना और गठबंधन एजंडा के जरिये क्षमताओं को बढ़ाना होगा।

उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य से आज भी सचाई यह है कि अंतरराष्ट्रीय बैठकों में पुरानी ताकतों का दबदबा है। इस दबदबे में क्रूर राजनैतिक ताकत के बजाय कल्पनाओं और अवधारणाओं, एजंडा और उनके दबदबे वाले संगठनों का ज्यादा जोर है। जी-7 में पुराने देश के तत्व आज भी बड़े पैमाने पर एजंडा तय करते हैं। हम अकसर पाते हैं कि वे हमेशा अपने पसंदीदा दृष्टिकोण पर सहमत हो जाते हैं। जब बड़ी ताकतों में असहमति होती है, तभी हम बाकियों में कुछ उम्मीद बंधती है।’

राजन ने कहा,‘जब तक उभरता विश्व बौद्धिक और विश्लेषणात्मक आधार पर अपना एजंडा आगे नहीं बढ़ाता और इसके सहयोग के लिए गठबंधन नहीं करता, उसे आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलता है।’ एक्सप्रेस समूह के संस्थापक रामनाथ गोयनका की 25 वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने रामनाथ गोयनका व्याख्यानमाला की शुरुआत की है। इसका लक्ष्य बदलाव के प्रति गहरी समझ विकसित करने के साथ ही समसामयिक रुचि के विषयों पर बहस चलाना है।
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रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन शनिवार को नई दिल्ली में रामनाथ गोयनका व्याख्यानमाला में व्याख्यान देते हुए।