भारतीय रिजर्व बैंक ने अच्छे दिनों की उम्मीद के साथ पॉलिसी रेट में कोई बदलाव नहीं किया है और रिपो रेट को 4 पर्सेंट ही बनाए रखने का फैसला लिया है। रिपो रेट में बदलाव न होने का अर्थ है कि बैंक लोन की दरों में कोई कमी नहीं होगी। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने केंद्रीय बैंक के फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि सर्वसम्मति से मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी में रेट चेंज न करने का फैसला लिया गया है। उन्होंने कहा कि घरेलू अर्थव्यवस्था और वैश्विक इकॉनमी के हालातों को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। इसके साथ ही आरबीआई गवर्नर ने कहा कि अब बुरा दौर गुजर गया है और अब धीरे-धीरे कोरोना से पहले वाले हालात की ओर बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि भले ही पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में 23.9 पर्सेंट की गिरावट देखने को मिली है, लेकिन पूरे वित्त वर्ष के दौरान इसमें बड़ी कमी आएगी। वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 9.5 पर्सेंट की गिरावट देखने को मिल सकती है। यही नहीं चौथी तिमाही में अर्थव्यवस्ता पॉजिटिव हो सकती है। गवर्नर ने कहा कि सितंबर में समाप्त होने वाली दूसरी तिमाही में जीडीपी 9.8 पर्सेंट गिरावट में रहेगी। इसके अलावा दिसंबर में समाप्त तिमाही में अर्थव्यवस्था में गिरावट कम होगी और इसके माइनस 5.6 पर्सेंट रहने की उम्मीद है। वहीं वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में भारतीय जीडीपी की ग्रोथ 0.5 पर्सेंट हो सकती है।
आरबीआई के अनुमान को देखें तो अगले वित्त वर्ष से अर्थव्यवस्था को ग्रोथ मिलने की उम्मीद है। साफ है कि यह मौजूदा वर्ष निगेटिव ग्रोथ की भेंट चढ़ जाएगा। बता दें कि वर्ल्ड बैंक और आरबीआई का ग्रोथ का अनुमान लगभग एक समान है। वर्ल्ड बैंक के अनुमान के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था में वित्त वर्ष 2020-21 में 9.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की जा सकती है।
विश्व बैंक ने कहा, 1991 से भी बड़ा संकट: वर्ल्ड बैंक के अनुसार कोरोनावायरस के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत 1991 तक चले बैलेंस ऑफ पेमेंट क्राइसिस से भी ज्यादा गंभीर हो गई है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार पूरे दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था में 7.7 पर्सेंट की गिरावट देखने को मिल सकती है जो अब तक का सबसे बड़ा रिसेशन होगा।