करीब 9 साल पहले पूर्व फाइनेंस मिनिस्टर जो बाद में देश के राष्ट्रपति भी बने प्रणव मुखर्जी ने एक ऐसा कानून पास कराया था, जिस पर खूब विवाद हुआ था। उसे मोदी सरकार अपने कार्यकाल 7 साल पूरे होने के बाद खत्म करने जा रही है। इस कानून का नाम है रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स कानून। जिसके लिए सरकार की ओर से गुरुवार को संसद में टैक्सेशन लॉज (अमेंडमेंट) बिल, 2021 संसद के सामने रख दिया है।
इस कानून को 2012 में बनाया गया था। जिसके बाद सरकार को पहले की तारीख से टैक्स लगाने का अधिकार मिल गया था। तत्कालिक वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने फाइनेंस एक्ट में बदलाव कर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का अधिकार दिया था। उस समय वित्त मंत्री ने इस कानून को लेकर तर्क दिया था कि कोर्ट ने कई मौकों पर इस तरह के सुझाव दिए हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला भी दिया। जिसमें कहा गया था कि सरकार को इसका हल निकालना चाहिए। निवेशकों की जिम्मेदारी और ऑनर्स को लेकर स्पष्टता होनी चाहिए। सरकार संशोधन करके ही ऐसा कर सकती है।
इस कानून को लेकर हुआ काफी विवाद : इस कानून को लेकर काफी विवाद देखने को मिला था ओर विदेशी निवेश को आकर्षित करने को लेकर भारत की छवि को बडा झटका लगा था। कई जानकारों की ओर से इस कानून को लेकर सवाल उठाए थे। वास्तव में रेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन एक ऐसा प्रोसेस है, जिसके लागू होने से पहले की तारीख से ही टैक्स लागू हो जाता है। इस तरह का टैक्स आयकर विभाग की ओर से कंपनियों पीर लगाया जाता है। इस कानून के तहत केंद्र सरकार ने ब्रिटिश कंपनी केयर्न एनर्जी और वोडाफोन को टैक्स डिमांड भेजा था।
कोर्ट में दी गई थी चुनौती : दोनों कंपनियों की ओर से भारत सरकार की टैक्स डिमांड को कोर्ट में चुनौती दी थी। जिसके बाद लंबे समय तक कानूनी जंग लडने के बाद दोनों कंपनियों को इस टैक्स से राहत मिली। इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन ने कंपनियों के हक में फैसला सुनाया। केयर्न ने तो इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन के फैसले को लागू कराने के लिए दुनिया के कई देशों में मामला दायर किया हुआ है। यही वजह है कि इस सरकार अब इस कानून के पिंड छुड़ाना चाहती है।