मुकेश अंबानी के छोटे भाई और रिलायंस धीरूभाई अंबानी ग्रुप के प्रमुख अनिल अंबानी को दिल्ली मेट्रो के खिलाफ बड़ी जीत हासिल हुई है। रिलायंस इंफ्रा की लड़ाई आर्बिट्रेशन अवॉर्ड से धन नियंत्रण को लेकर थी। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों के पैनल ने गुरुवार को 2017 के आर्बिट्रेशन अवॉर्ड को अनिल अंबानी की कंपनी फेवर में बरकरार रखा।
रिलायंस इंफ्रा की एनुअल रिपोर्ट के मुताबिक, मध्यस्थता न्यायाधिकरण का पुरस्कार ब्याज सहित 46.6 अरब रुपए से ज्यादा का है। इस रकम से अनिल अंबानी कुछ मुश्किलें आसान हो सकती है। इस फैसले के आने के बाद रिलायंस इंफ्रा के शेयरों में जबरदस्त तेजी देखने को मिल रही है। जिसकी वजह से निवेशकों की खूब कमाई भी हो रही है।
कुछ मुश्किलें होंगी आसान
इस फैसले से अनिल अंबानी और उनकी कंपनियों की मुश्किलें कुछ आसान हो जाएंगी। रिलायंस टेलीकॉम दिवालियापन में है और वह देश के सबसे बड़े लेंडर से पर्सनल दिवाला केस भी लड़ रहे हैं। कंपनी के वकीलों ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि रिलायंस इन रुपयों का यूज कर्जदारों का भुगतान करने लिए करेगी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को कंपनी के अकाउंट्स को एनपीए में डालने से रोक दिया था। मामले में अंतिम आदेश कर्जदारों पर कोर्ट के प्रतिबंध को भी हटा देता है।
निवेशकों की हुई चांदी
इस फैसले के बाद से रिलायंस इंफ्रा के निवेशकों की चांदी हो गई है, क्योंकि रिलायंस इंफ्रा के शेयरों में 5 फीसदी से ज्यादा की तेजी देखने को मिल रही है। आज कंपनी का शेयर 74.15 रुपए पर आ गया है। जबकि कंपनी के शेयरों की शुरूआत 72 रुपए से हुई थी। बीएसई से मिले आंकड़ों के अनुसार निवेशकों को एक सितंबर के बाद 12 फीसदी से ज्यादा रिटर्न मिल चुका है।
क्या है पूरा मामला
रिलायंस इंफ्रा की एक यूनिट ने 2008 में दिल्ली मेट्रो के साथ देश का पहला प्राइवेट सिटी रेल प्रॉजेक्ट 2038 तक ऑपरेट करने का कांट्रैक्ट किया था। 2012 में फीसदी और ऑपरेशन के विवादों में आने के बाद रिलायंस इंफ्रा की यूनिट ने मेट्रो प्रॉजेक्ट का ऑपरेशन बंद कर दिया। कंपनी ने दिल्ली मेट्रो के खिलाफ मध्यस्थता का केस फाइल कर दिया। मेट्रो ने कांट्रैक्ट के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए टर्मिनेशन फीस मांगी थी