भारत में अधिकांश कार्यबल स्व-नियोजित हैं और पिछले कुछ सालों में स्वरोजगार को भारत की रोजगार चुनौती के जवाब के रूप में देखा गया है। भारत के पिछले (अंतरिम) वित्त मंत्री पीयूष गोयल भी दावा कर चुके हैं कि नौकरी में कमी एक अच्छा संकेत है क्योंकि भारत के युवा आज नौकरी करने की बजाय नौकरी देना ज्यादा पसंद करते हैं। एक साक्षात्कार के दौरान जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रोजगार सृजन पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने भी पकौड़ा विक्रेता का उदाहरण दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी से यह सवाल पूछ गया था।
मगर पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS 2017-18) के आधिकारिक रोजगार डेटा की मानें तो इस क्षेत्र में कमाई में बढ़ोतरी नहीं हुई। ऐसा पहली बार है जब PLFS ने कमाई का आंकड़ा जुटाया हो। चौंकाने वाली बात है कि आंकड़े छोटे नहीं है। भारत में अपना रोजगार करने वाले अधिकांश लोग रोजगार देने की स्थिति में नहीं रहे और उनकी कमाई में भी कमी आई है। जबकि पिछले कुछ वर्षो में कुछ मंत्री इसके उलट दावे करते रहे हैं।
एक अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट की खबर के मुताबिक सर्वे में पाया गया कि 70 फीसदी स्वरोजगार करने वाले खुद मेहनत कर रहे हैं। इसका मतलब है स्वरोजगार से जुड़े ऐसे लोग जिसमें मालिक किसी को नौकरी पर रखे बिना खुद काम करता है। इसमें 26 फीसदी बिना वेतन पाने वाले ऐसे लोग थे जो अपना रोजगार चलाने में घर के सदस्यों की मदद करते हैं, लेकिन उन्हें नियमित वेतन नहीं मिलता। आकंड़ों से पता चलता है कि महज चार फीसदी स्वरोजगार करने वाले ऐसे थे जिन्होंने लोगों को नौकरी पर रखा।
आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि साल 2011-12 से 2017-18 के बीच चस्वरोजगार के खुद मजदूरी के आंकड़ों में 7.3 फीसदी और रोजगार देने के मामले में एक फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसमें अधिकांश स्वरोजगार यानी 60 फीसदी खेती से जुड़े हुए हैं। गैर-कृषि गतिविधियों में लगे अधिकांश लोग व्यापार, विनिर्माण, परिवहन और भंडारण में थे।
डेटा के मुताबिक कार ड्राइवर्स स्वरोजगार मालिकों से बेहतर भुगतान पाने वालों में से एक थे। इनमें ओला-उबर ड्राइवर शामिल है। इसके मुताबिक स्वरोजगार में अधिकतर लोगों ने आठ हजार प्रति माह की कमाई की जबकि ड्राइवरी पेशे से जुड़े लोगों ने 15,000 रुपए प्रति माह की कमाई की। करीब 10 फीसदी स्वरोजगार करने वाले ने बीस हजार रुपए से ज्यादा की कमाई जानकारी दी जबकि एक फीसदी लोगों ने माना की उन्होंने 50,000 प्रतिमाह से ज्यादा की कमाई की।
आंकड़ों के मुताबिक स्वरोजगार के क्षेत्र में जुड़ी ग्रामीण महिलाओं ने तीन हजार रुपए प्रति माह तो शहरी इलाकों की महिलाओं ने चार हजार रुपए प्रति माह की कमाई की, जोकि दोनों क्षेत्रों में काफी कम है। कुल मिलाकर स्वरोजगार में लगी 65 फीसदी महिलाओं ने प्रति माह पांच हजार रुपए से कम कमाए और 90 फीसदी महिलाओं की कमाई दस रुपए से कम थी।