दिल्ली की चुनावी हार के बाद मध्य वर्ग का विश्वास फिर जीतने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली 28 फरवरी को आम आदमी के अनुकूल बजट पेश कर सकते हैं जिसमें या तो कर-स्लैब बढ़ाये जा सकते हैं या बचत योजनाओं में निवेश पर छूट की सीमा बढ़ायी जा सकती है।
इसके अलावा वह ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत देश में विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहित करने उपाय भी कर सकते हैं। इस अभियान का लक्ष्य है भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनान और विनिर्माण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसरों का सृजन करना है।
जेटली ने जुलाई 2014 में अपने पहले बजट में व्यक्तिगत करदाताओं को राहत पहुंचाने का दृष्टिकोण रखा था। उम्मीद है कि वह शनिवार अपने पहले पूर्ण बजट में उस चीज को आगे बढ़ाएंगे। पिछेली बार उन्होंने व्यक्तिगत आयकर छूट की सीमा 50,000 रुपए बढ़ाकर 2.50 लाख रुपए और बचत योजनाओं में 1.50 लाख रुपए तक निवेश पर छूट दी जबकि इससे पहले यह छूट 1 लाख रुपए तक की सीमित थी।
विशेषज्ञों के मुताबिक, हालांकि, इस बार जेटली इनमें से किसी एक को चुन सकते हैं क्योंकि उन्हें अतिरिक्त राजस्व की भी जरूरत है ताकि सरकारी निवेश बढ़ा कर आर्थिक वृद्धि तेज की जा सके।
वह स्वास्थ्य बीमा में निवेश सीमा में भी कर छूट बढ़ा सकते हैं और पेंशन योजनाओं में बचत पर सभी तीन चरणों – प्रवेश, संचयन और निकासी – में छूट पर भी विचार कर सकते हैं। जेटली सरकारी अवकाश यात्रा भत्ता (एलटीए) का दायरा बढ़ाने और इसका लाभ हर साल देने का भी प्रावधान कर सकते हैं।
हाल ही में संपन्न दिल्ली विधान सभा के चुनाव में भाजपा सरकार का प्रदर्शन बेहद खराब रहा जिसे कुल 70 सीटों में से सिर्फ तीन सीटें मिलीं। सरकार के प्रमुख क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने के मद्देनजर जेटली कर-बचत वाले बुनियादी ढांचा बांड पेश कर सकते हैं और आवास रिण में ब्याज एवं मूलधन के भुगतान के संबंध में ज्यादा कर राहत दे सकते हैं।
पिछले सल जेटली ने आवास ऋण के पुनर्भुगतान पर कर छूट की सीमा 1.5 लाख रुपए से बढ़ाकर दो लाख रुपए कर दी थी। वित्त मंत्री ने पिछले साल कॉर्पोरेट या व्यक्तिगत पर अधिभार की दर में कोई बदलाव नहीं किया था और आगामी बजट में भी इसे मौजूदा स्तर पर ही बरकरार रख सकते हैं। व्यक्तिगत तौर पर एक करोड़ रुपए से अधिक की आय पर 10 प्रतिशत का अधिभार लगाया जाता है जबकि कंपनियों पर यह अधिभार 10 करोड़ रुपए से अधिक के मुनाफे पर लगता है।
इधर कॉर्पोरेट मोर्चे पर जेटली विवादास्पद गार (सामान्य कर परिवर्जन नियम) को कम से कम दो साल के लिए टाल सकते हैं क्योंकि इससे निवेश के माहौल पर विपरीत असर हो सकता है जिसे सरकार सुधारना चाहती है।
जेटली पर विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) के लिए कर रियायतों की घोषणा का दबाव बढ़ रहा है ताकि उन निवेशकों को वापस लाया जा सके जो सेज स्थापना के लिए मिली मंजूरियां वापस कर रहे हैं।
अप्रत्यक्ष कर के संबंध में वित्त मंत्री वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने के लिए जमीन तैयार करेंगे जो अप्रैल 2016 से लागू होने की उम्मीद है। इस के लिए वह धीरे-धीरे सेवा कर की दर बढ़ा सकते हैं जो फिलहाल 12 प्रतिशत है क्योंकि जीएसटी में अप्रत्यक्ष कर के लिए सिर्फ एक दर होगी।
उल्टा शुल्क ढांचा के लिहाज से बजट उद्योग विशेष तौर पर वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मा जैसे क्षेत्रों की चिंता पर ध्यान दे सकता है। उल्टा शुल्क ढांचे का अर्थ है तैयार माल के मुकाबले कच्चे माल पर ज्यादा कर जिससे लागत बढ़ती है।
उद्योग मांग करता रहा है कि सरकार को कच्चे माल और अन्य माल पर कराधान से जुड़ी गड़बड़ी दूर करनी चाहिए।