राजधानी और शताब्दी ट्रेनों में रेलवे 15 जून से खाने को वैकल्पिक बनाने का ट्रायल शुरू करने जा रहा है। इसके तहत यात्री चाहें तो खाने के लिए मना कर सकते हैं और इसके लिए उन्हें पैसे भी नहीं देने होंगे। टिकट बुकिंग के दौरान खाने को लेकर यात्री मना कर सकते हैं। यह ट्रायल 45 दिनों का होगा। 4 दशक पहले जब राजधानी ट्रेन का संचालन शुरू हुआ था तब से इनमें खाने को अनिवार्य बनाया हुआ है।
नए नियमानुसार अगर यात्री खाना नहीं लेता है तो उसे पैसे नहीं देने होंगे। इसका मतलब किराए में लगभग 300 रुपये की कमी। रेलवे खाना सर्व करने के बदले कैटरिंग चार्ज लेता है। लंबी दूरी की ट्रेनों में कैटरिंग चार्ज ज्यादा होता है। यह रेट हर श्रेणी के लिए अलग-अलग होती है। 45 दिन का ट्रायल पटना राजधानी, दिल्ली-मुंबई अगस्त क्रांति राजधानी, पुणे-सिकंदराबाद शताब्दी और हावड़ा-पुरी शताब्दी में होगा। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि ट्रायल महज औपचारिकता भर है। खाना न लेने की सुविधा को यात्री हाथोंहाथ लेंगे। रेलवे में खाने की गुणवत्ता को लेकर सबसे ज्यादा शिकायतें होती हैं। पहले राजधानी में परोसा गया खाना इसकी विशेषता होता था लेकिन साल दर साल इसके बारे में शिकायतें बढ़ने लगी।
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आईआरसीटीसी पोर्टल पर टिकट बुक कराने के दौरान पॉपअप आएगा। इसमें पूछा जाएगा कि क्या आप खाना छोड़ना चाहते हैं। हां चुनने पर टिकट की कीमत कम हो जाएगी। वहीं काउंटर पर टिकट बुक कराने पर यह जिम्मेदारी बुकिंग अधिकारी की होगी। अधिकारियों का कहना है कि यात्रियों के खाने के विकल्प को न चुनने से आईआरसीटी पर मौजूद र्इ-कैटरिंग और अन्य फोन सर्विसेज का उपयोग बढ़ेगा। इसके तहत थर्ड पार्टी वेंडर खाना सप्लाई करेंगे।
वहीं एक बार खाना न चुनने का विकल्प चुनने पर निर्णय को बदला नहीं जा सकेगा। हालांकि यह प्रस्ताव रखा गया था कि यदि कोई यात्री यात्रा के दौरान अपना मन बदलता है तो उससे 20 प्रतिशत या इससे ज्यादा कैटरिंग चार्ज वसूला जाएगा। लेकिन बाद में इसे अंतिम दिशा-निर्देशों में शामिल नहीं किया गया।
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