पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन टकराव के बाद भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया पर चीन के खिलाफ अभियान जमकर चला। चीनी उत्पादों के बहिष्कार, चीनी ऐप पर प्रतिबंध, चीनी कंपनियों के साथ कारोबार पर रोक आदि के अभियान चलाए गए। लेकिन हाल में आए भारत सरकार के आंकड़े कहते हैं कि सीमा पर तनाव के दौरान चीन के साथ भारत का कारोबार घटा नहीं, बढ़ गया।

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने चीन के साथ कारोबार के नवंबर 2020 तक के आंकड़े जारी किए हैं। इसके मुताबिक 2020-21 में अप्रैल से नवंबर के बीच भारत ने विदेशों से जितना सामान खरीदा, उसमें से 18 फीसद चीन से आया। इसकी तुलना में अप्रैल से नवंबर 2019 के आंकड़ों से पता चलता है कि तब कारोबार 15 फीसद ही था। जाहिर है, अगले आठ महीने में भारत के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी तीन फीसद बढ़ गई।

इस दौरान भारत का कुल आयात 28 फीसद से ज्यादा घट गया। हालांकि चीन से आयात भी 12 फीसद से ज्यादा घटा है। इसके बावजूद कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी बढ़ी। जाहिर है, तनाव की अवधि में भारत ने चीन से ज्यादा सामान खरीदा। अप्रैल से नवंबर के बीच भारत ने 16.33 लाख करोड़ रुपए का सामान दूसरे देशों से खरीदा। इसमें से 2.89 लाख करोड़ रुपए का सामान चीन से आया। इसी तरह से भारत ने करीब 13 लाख करोड़ का सामान दूसरे देशों को बेचा। इसमें से एक लाख करोड़ से ज्यादा सामान चीन को बेचा गया।

सबसे ज्यादा कारोबार : वर्ष 2011-12 से पहले तक संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) हमारा सबसे बड़ा कारोबारी देश हुआ करता था, लेकिन उसके बाद यूएई की जगह चीन ने ले ली। 2011-12 से लेकर 2017-18 तक चीन हमारा सबसे बड़ा कारोबारी देश बना रहा। वर्ष 2018-19 में चीन की जगह अमेरिका ने ले ली और अमेरिका भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार बन गया।

दो साल तक अमेरिका ही भारत का सबसे बड़ा कारोबारी देश रहा। अब चीन फिर पहले नंबर पर आ गया है। 2020-21 में अप्रैल से नवंबर के बीच भारत और चीन के बीच 3.91 लाख करोड़ रुपए का कारोबार हुआ है, लेकिन चीन के साथ कारोबार करने में सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इसके साथ हमारा आयात-निर्यात का फर्क बहुत ज्यादा रहता है। चीन से भारत ने खरीदा ज्यादा और उसे बेचा कम। अप्रैल से नवंबर के बीच ही चीन के साथ हमारा यह ट्रेड बैलेंस 1.87 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रहा।

वर्ष 2014 से 2019 के बीच चीन से विदेशी पूंजी निवेश में पांच गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई थी, लेकिन 2020 में इसमें भारी कमी आई। देश में निजी कंपनियों के वित्तीय लेनदेन और उनकी कीमतों में उतार-चढ़ाव पर नजर रखने वाले वेंचर इंटेलिजेंस के आंकड़ों के मुताबिक चीन और हांगकांग स्थित फंड्स का निवेश 2019 के 3.5 अरब डॉलर से घटकर 2020 में 1.05 अरब डॉलर रह गया।

अगर सामान्य रूप में एफडीआइ के आंकड़ें देखें तो भी अप्रैल से सितंबर 2020 की अवधि में चीन से महज 5.5 करोड़ डॉलर की एफडीआइ दर्ज हुई, जो पिछले तीन साल के दौरान किसी भी छमाही में दर्ज हुई सबसे कम राशि है। इसका स्वाभाविक असर देश के अंदर चल रही चीनी कंपनियों के कारोबार पर और उससे जुड़े लोगों की कमाई तथा उनके रोजगार पर पड़ रहा था।

समन्वय समिति : चीन से आए एफडीआइ के बड़े प्रस्तावों को स्थिति का सावधानी से आकलन करने के बाद मंजूरी दी जाएगी। इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए सरकार ने एक समन्वय समिति का गठन किया है, जिसमें गृह, विदेश, कॉमर्स एंड इंडस्ट्री और नीति आयोग के अधिकारियों को शामिल किया गया है। यह समिति विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड से अलग काम करेगी।