रतन टाटा के करीबी सहयोगी मेहली मिस्त्री जल्द ही टाटा ट्रस्ट्स (Tata Trusts) से बाहर होने वाले हैं। पिछले हफ्ते जारी एक सर्कुलर प्रस्ताव (circular resolution) में छह में से तीन ट्रस्टीज़ ने उनके पुनर्नियुक्ति (reappointment) के खिलाफ मतदान किया। इसके बाद, मेहली मिस्त्री को सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट दोनों के बोर्ड से हटना पड़ेगा। इसका मतलब यह है कि बहुमत से नामांकन के विरोध में वोट पड़ने के बाद, मेहली मिस्त्री अब टाटा ट्रस्ट्स के गवर्निंग बोर्ड्स से इस्तीफा देने जा रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, उनकी पुनर्नियुक्ति का विरोध करने वाले तीन ट्रस्टी थे। इनमें टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा, टीवीएस ग्रुप के चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन और पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह शामिल हैं।
सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट में दारियस खंबाटा और प्रमित झावेरी ने मेहली मिस्त्री के कार्यकाल जारी रखने का समर्थन किया जबकि सर रतन टाटा ट्रस्ट में खंबाटा और जहांगीर एच.सी. जहांगीर ने उनके पक्ष में मतदान किया।
यह बंटा हुआ फैसला (split verdict) ट्रस्ट्स की नेतृत्व टीम के भीतर नियुक्तियों और प्रशासनिक मुद्दों पर बढ़ते मतभेदों को उजागर करता है। इसके साथ ही यह फैसला मेहली मिस्त्री के भारत के दो सबसे प्रभावशाली परोपकारी संस्थानों (philanthropic institutions) के साथ उनके औपचारिक संबंधों के खात्मे को भी दिखाता है।
मेहली मिस्त्री को पहली बार 2022 में ट्रस्टी के रूप में शामिल किया गया था और उनका मौजूदा तीन साल का कार्यकाल 28 अक्टूबर को समाप्त हो रहा है। उनकी दोबारा नियुक्ति का यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब टाटा ट्रस्ट्स के भीतर आंतरिक मतभेदों की खबरें सामने आई हैं। एक गुट को चेयरमैन नोएल टाटा का समर्थक माना जा रहा है जबकि दूसरा गुट मिस्त्री के नेतृत्व में है, जिसमें रतन टाटा के करीबी सदस्य शामिल हैं।
कौन हैं नोएल टाटा? Tata Trusts के चेयरमैन
टाटा ट्रस्ट्स की सामूहिक रूप से टाटा संस (Tata Sons) में 66% हिस्सेदारी है जिससे वे इस पूरे ग्रुप के सबसे प्रभावशाली शेयरधारक बन जाते हैं।
मेहली मिस्त्री ने किया था वेणु श्रीनिवासन का समर्थन
गौर करने वाली बात है कि इसी सप्ताह की शुरुआत में टाटा ट्रस्ट्स ने सर्वसम्मति से वेणु श्रीनिवासन को आजीवन ट्रस्टी (Lifetime Trustee) के रूप में दोबारा नियुक्त किया। इस फैसले का समर्थन मेहली मिस्त्री ने भी किया था। मिस्त्री के साथ प्रमित झावेरी, जहांगीर एच.सी. जहांगीर, और दारियस खंबाटा- इन तीनों ट्रस्टीज ने भी वेणु श्रीनिवासन की पुनर्नियुक्ति के पक्ष में मतदान किया।
हालांकि, उन्होंने अपने समर्थन के साथ एक महत्वपूर्ण शर्त रखी थी कि भविष्य में किसी भी ट्रस्टी की पुनर्नियुक्ति सर्वसम्मति (unanimous approval) से ही मंजूर की जाएगी। अगर सर्वसम्मति नहीं बनती है तो उन्होंने चेतावनी दी कि उनकी स्वीकृति स्वतः रद्द मानी जाएगी।
रतन टाटा के कार्यकाल के दौरान टाटा ट्रस्ट्स में मतदान (voting) की कोई परंपरा नहीं थी। सभी निर्णय हमेशा सर्वसम्मति और सामूहिक सहमति (consensus and collective agreement) से लिए जाते थे लेकिन अब यह पुरानी परंपरा आंतरिक मतभेदों के बीच परखी जा रही है।
नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह ने कथित तौर पर मेहली मिस्त्री द्वारा प्रस्तावित शर्तों को नज़रअंदाज कर दिया। अब यह स्पष्ट नहीं है कि मिस्त्री, वेणु श्रीनिवासन की ट्रस्टी के रूप में जारी रहने पर दी गई अपनी शर्तीय स्वीकृति को वापस लेंगे या फिर कानूनी कदम उठाकर अपने अस्वीकार को चुनौती देंगे। जैसा कि हमने बताया कि रतन टाटा के कार्यकाल में ट्रस्टीज़ के चयन की प्रक्रिया हमेशा सर्वसम्मति और सहमति पर आधारित होती थी।
मिस्त्री टाटा ट्रस्ट्स की चार सदस्यीय कार्यकारी समिति (Executive Committee) के सदस्य थे जिसका नेतृत्व वर्तमान में नोएल टाटा कर रहे हैं। विजय सिंह और वेणु श्रीनिवासन ट्रस्ट्स के उपाध्यक्ष (Vice Chairmen) हैं। पिछले महीने, विजय सिंह को टाटा संस बोर्ड से इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि उनके पुनर्नियुक्ति प्रस्ताव का विरोध चार ट्रस्टीज़- मेहली मिस्त्री, दारियस खंबाटा, प्रमित झावेरी और जहांगीर एच.सी. जहांगीर ने किया था।
वेणु श्रीनिवासन और मेहली मिस्त्री दोनों को आजीवन ट्रस्टी बनाए जाने का प्रावधान 17 अक्टूबर 2024 को हुई बोर्ड बैठक में पारित एक प्रस्ताव के तहत किया गया था। इस प्रस्ताव के अनुसार, किसी भी ट्रस्टी का कार्यकाल खत्म होने पर संबंधित ट्रस्ट द्वारा उसे बिना अवधि सीमा के पुनर्नियुक्त किया जा सकता है बशर्ते कि यह कानूनी प्रावधानों के अनुरूप हो। इसका मतलब यह है कि अब ट्रस्टीज आजीवन नियुक्ति के पात्र हैं।
रतन टाटा के निधन (9 अक्टूबर 2024) के बाद 11 अक्टूबर 2024 को नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट्स का चेयरमैन चुना गया था और उस समय मेहली मिस्त्री ने नोएल टाटा के चेयरमैनशिप के लिए समर्थन दिया था।
हालांकि बाद में, नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह ने मिस्त्री की पुनर्नियुक्ति का विरोध किया जबकि प्रमित झावेरी, दारियस खंबाटा और जहांगीर एच.सी. जहांगीर ने मिस्त्री के पक्ष में समर्थन जताया।
ताजा विवाद की जड़ करीब एक महीने पहले उस समय सामने आई जब मेहली मिस्त्री के नेतृत्व वाले चार ट्रस्टीज़ के समूह ने टाटा संस (टाटा समूह की मुख्य होल्डिंग कंपनी) के बोर्ड में विजय सिंह की नामांकित निदेशक (nominee director) के रूप में पुनर्नियुक्ति का विरोध किया।
इस कदम ने टाटा ट्रस्ट्स के भीतर पहली बार 3-4 के विभाजन को जन्म दिया जो भारत की सबसे सम्मानित कॉरपोरेट संस्थाओं में से एक के भीतर सार्वजनिक मतभेद का एक तरह से शुरुआती संकेत था। इसके बाद विजय सिंह ने सितंबर 2025 के दूसरे सप्ताह में टाटा संस बोर्ड से इस्तीफा दे दिया। हालांकि वेणु श्रीनिवासन और नोएल टाटा ने उनका समर्थन किया लेकिन यह पर्याप्त नहीं था क्योंकि टाटा ट्रस्ट्स के सभी फैसले सर्वसम्मति (unanimous approval) से ही लिए जाते हैं।
इसके जवाब मे श्रीनिवासन और नोएल टाटा ने मेहली मिस्त्री की टाटा संस बोर्ड में सदस्यता का विरोध किया जिससे ट्रस्टीज़ के बीच बड़ा मतभेद खुलकर सामने आया। सूत्रों के अनुसार, नोएल टाटा अपने इस फैसले को वापस लेने के मूड में नहीं हैं यानी मिस्त्री की नामांकन उम्मीदवारी खारिज ही रहेगी।
वर्तमान में टाटा संस बोर्ड में चार सीटें खाली हैं- विजय सिंह के इस्तीफे के बाद और इससे पहले जगुआर लैंड रोवर के पूर्व सीईओ राल्फ स्पेथ, उद्योगपति अजय पीराम और स्वतंत्र निदेशक लियो पुरी के पद छोड़ने के कारण।
नोएल टाटा के चेयरमैन चुने जाने के बाद जो मतभेद धीरे-धीरे सतह पर आ रहे थे अब वे दो स्पष्ट गुटों में बदल चुके हैं और दोनों ही अपने-अपने तरीके से यह दावा कर रहे हैं कि वे ‘टाटा विरासत की सच्ची भावना’ को आगे बढ़ा रहे हैं।
