निर्भय कुमार पांडेय

कार बनाने वाली सबसे बड़ी घरेलू कंपनी मारुति सुजुकी अगले साल अप्रैल से डीजल गाड़ियां बनाना बंद कर देगी। फैसले के बाद से डीजल वाहन वालों की चिंता बढ़ गई है। वाहन मालिकों को इस बात की चिंता सता रही है कि ब्रिकी बंद होने से उनके वाहनों का बाजार मूल्य (मार्केट वैल्यु) कम हो जाएगी। सबसे अधिक वे वाहन मालिक परेशान हैं, जो दो-तीन साल के अंतराल में वाहन बेच कर दूसरे वाहन खरीदते थे, जिससे उन्हें पुराने वाहनों की अच्छी कीमत मिल जाती थी। साथ ही छोटे वाहनों का कमर्शियल इस्तेमाल करने वाले वाहन मालिकों को अंदेशा है कि ब्रिकी बंद होने के बाद कलपूर्जे बाजार में मिलेंगे की नहीं। साथ ही वे वाहन मालिक कहीं अधिक अंदेशे में हैं, जिन्होंने अभी हाल में डीजल इंजन के वाहन खरीदे हैं। उन्हें डर सता रहा है कि खराब होने के बाद कलपूर्जे सर्विस सेंटर पर उपलब्ध होंगे या नहीं। हालांकि, इस फैसले के साथ दिल्ली-एनसीआर के डीलर कंपनी के साथ खड़े हैं और उनका कहना है कि यह फैसला कंपनी ने कई पहलुओं को ध्यान में रखकर लिया होगा। डीलरों का मनना है कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की हालत बद से बदतर होती जा रही है। इस दृष्टि से यह फैसला स्वागत योग्य है।

आॅटोमोबाइल उद्योग से जुड़े जानकारों का मानना है कि आगामी साल से भारत स्टेज 6 (बीएस6) उत्सर्जन मानक देश भर में लागू हो रहा है। इसके बाद से वाहनों को लेकर नियम कानून काफी सख्त हो जाएंगे। इसे ही ध्यान में रखकर मारुति सुजुकी ने यह निर्णय लिया है। वहीं, कुछ जानकारों का मानना है कि प्रदूषण की समस्या दिनों-दिन जिस तरह से विकराल रूप धारण कर रही है, उसे ध्यान में रखते हुए सरकार या फिर कंपनी स्तर पर इस प्रकार के फैसले लेने जरूरी हो गए थे। हालांकि उन लोगों को थोड़ा नुकसान हो सकता है, जिन्होंने हाल के दिनों में डीजल इंजन के वाहन खरीदे हैं। हो सकता है उन्हें आगे चलकर वाहन के कलपूर्जे नहीं मिलें और वाहनों की सर्विस और मरम्मत को लेकर भी परेशानियों का सामना करना पड़े।

भले ही इस फैसले को आॅटो डीलरों ने सराहा है, लेकिन ऐसे ग्राहक अधिक परेशान हैं, जिन्होंने अभी हाल ही में मारुति सुजुकी के 1500 सीसी इंजन के वाहन खरीदे हैं। लक्ष्मी नगर निवासी सुजीत सिंह का कहना है कि उन्होंने अभी तीन महीने पहले ही मारुति की स्विफ्ट डीजायर (डीजल) खरीदी है। अगर कल कोई कलपूर्जा खराब हो गया तो वो कहां बदला जाएगा। अगर इस बीच इंजन में कोई कमी आती है तो दोबारा से बदला जाएगा या नहीं। वहीं, दीपक कुमार का कहना है कि जो लोग वाहनों का कमर्शियल इस्तेमाल करते हैं, उनको इस फैसले से काफी परेशानी होगी। लंबी दूरी के लिए पेट्रोल वाहन फायदे का सौदा नहीं होते, कारण कि पेट्रोल इंजन के वाहन का एवरेज कम होता है। साथ ही पिकअप भी कम होता है। इस कारण कमर्शिल इस्तेमाल में इन वाहनों का प्रयोग कम से कम होता है। इस फैसले को लेकर सैकेंड हैंड कारों की खरीद-फरोख्त करने वाले डीलरों का कहना है कि इसका थोड़ा बहुत कारोबार पर असर पड़ेगा। इन डीलरों का मानना है कि कुछ ग्राहक दो-तीन साल बाद वाहन बेच देते हैं और फिर नए मॉडल को खरीदते हैं।

कई पहलुओं को समझना जरूरी
फेडरेशन आॅफ आॅटोमोबाइल डीलर एसोसिएशन (एफएडीए) के सीईओ शहर्ष दमानी का कहना है कि इस फैसले को समझने के लिए हमें कई पहलुओं को जानना जरूरी है। बीते दो-तीन सालों में डीजल और पेट्रोल के दामों के बीच मामूली अंतर (गैप) रह गया है, जबकि पहले यह अंतर बहुत अधिक होता था। डीजल के दाम पेट्रोल की तुलना में करीब-करीब आधे होते थे। वहीं, पेट्रोल की तुलना में डीजल के छोटे वाहन डेढ़ से ढाई लाख रुपए महंगे होते हैं। बीएस6 मानक के लागू होने के बाद यह अंतर ढाई से तीन लाख रुपए के बीच हो जाएगा। पिछले एक-दो साल में डीजल के वाहनों की बिक्री कम हुई है। खासकर छोटे 1500 सीसी इंजन वाले वाहन अब ग्राहक कम लेना पसंद कर रहे हैं। इस आधार पर माना जा सकता है कि कंपनी ने यह फैसला लिया है। शहर्ष दमानी का मानना है कि इसका बाजार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और डीलर एसोसिएशन पर्यावरण की दृष्टि से भी मारुति सुजुकि कंपनी के इस फैसले के साथ खड़ा है।