मध्यस्थता के मामलों को तेजी से निपटाने और भारत में व्यापार करने के माहौल को सुगम बनाने के उद्देश्य से लाए गए मध्यस्थता और सुलह संशोधन विधेयक को लोकसभा ने गुुरुवार को अपनी मंजूरी दे दी। यह विधेयक इस संबंध में 23 अक्तूबर को जारी किए गए अध्यादेश का स्थान लेने के लिए लाया गया है।
मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 में संशोधन के लिए लाए गए इस विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए विधि मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि पिछले 10 वर्षों के दौरान विभिन्न स्तरों पर व्यापक चर्चा और विचार विमर्श के बाद इस विधेयक को लाया गया है। अदालतों में काफी संख्या में लंबित मामलों और इस विधेयक से हाई कोर्ट पर भार बढ़ने संबंधी विपक्षी सदस्यों के सवालों का जवाब देते हुए विधि मंत्री ने कहा कि हमने पहले भी कहा है कि अदालतों में मामले लंबित हैं और इस दिशा में सरकार पहल कर रही है। इस बारे में कई विधायी पहल की गई हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार की पहल के बाद लंबित मामलों में कमी आनी शुरू हुई है। विधेयक का विरोध करते हुए आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने कहा कि बड़ी चतुराई से अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक पंचाट की परिभाषा को बदल दिया गया है और कंपनी शब्द निकाल दिया गया है। जवाब में सदानंद गौड़ा ने कहा कि विधेयक में कारपोरेट शब्द में इसे समाहित किया गया है।
पंचाट के बारे में सदस्यों के सवालों पर विधि मंत्री ने कहा कि अगर सभी मामले अदालतों में चले जाएं, तब इस विधेयक का क्या मतलब रह जाएगा। अदालतों के अत्यधिक हस्तक्षेप को रोकने के लिए इसे लाया गया है। इसमें उस संशोधन को भी स्वीकार किया गया कि जब तक दोनों पक्ष सहमत नहीं होंगे तब तक वर्तमान में चल रहे मामलों पर यह लागू नहीं होगा। इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा में हिस्सा लेते हुए तृणमूल कांग्रेस की अर्पिता घोष ने इसका स्वागत किया और कहा कि यह कानून उपभोक्ताओं के अनुकूल, सस्ता और मामलों के जल्द निपटान में सहायक होगा।
‘मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) विधेयक 2015’ के तहत एक मध्यस्थ को 18 महीनों के भीतर मामले को सुलटाना होगा। हालांकि 12 महीने की अवधि समाप्त होने पर कुछ शर्तें लगाई जाएंगी ताकि मध्यस्थ मामले को ज्यादा लंबा नहीं खींच सके। अन्नाद्रमुक के बी सेनगुट्टुवन ने कहा कि 12 महीनों के भीतर मामले को सुलटाने के प्रावधान का उल्टा असर हो सकता है और इसे 24 महीने किया जाना चाहिए। भाजपा के जगदंबिका पाल ने कहा कि इससे अदालतों में मामलों के अंबार को कम करने में मदद मिलेगी व लोगों को सस्ता न्याय उपलब्ध होगा।
वाणिज्यिक विवादों के त्वरित निपटान के लिए कैबिनेट ने अगस्त में संशोधन विधेयक को मंजूरी दी थी ताकि मध्यस्थ एक तय समय सीमा के भीतर मामलों को सुलझा सकें। बीजद के तथागत सतपथी ने कहा कि जब केंद्र इस अधिनियम के तहत विवादों के समाधान के लिए समयसीमा तय कर सकता है तो आपराधिक मामलों के संबंध में ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के विधेयक सरकार की कारोबार को सहज सरल बनाने की इच्छा को प्रदर्शित करते हैं। साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि मध्यस्थों के रूप में सेवानिवृत्त जजों को नियुक्त करने के बजाय सरकार को पेशेवर प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना करनी चाहिए जहां युवाओं को इस पद के लिए प्रशिक्षित किया जा सके।