भूमि विधेयक की वजह से ग्रामीण विकास मंत्रालय पूरे साल खबरों में बना रहा और विपक्ष के साथ वादविवाद के बाद सरकार को वे संशोधन वापस लेने पड़े जो वह पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के बनाए गए भूमि कानून में करना चाहती थी। मंत्रालय में भूमि विधेयक सर्वाधिक चर्चित विषय था लेकिन सरकार में उच्च स्तर पर इससे निपटा गया और विपक्ष ने बार-बार ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह को इसके बारे में नहीं बताए जाने का आरोप लगाया। इस साल मंत्रालय के अन्य मुख्य फैसलों में सामाजिक-आर्थिक और जाति आधारित गणना (एसईसीसी) के आंकड़े जारी करना, 5,142.08 करोड़ रुपए के खर्च से श्यामा प्रसाद मुखर्जी अर्बन मिशन (एसपीएमआरएम) शुरू करना और सूखा या प्राकृतिक आपदा से प्रभावित इलाकों में मनरेगा के तहत काम के वर्तमान 100 दिन के बाद अतिरिक्त 50 जोड़ना शामिल हैं।
सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सड़कों के माध्यम से संपूर्ण ग्रामीण संपर्क का लक्ष्य हासिल करने के लिए 2022 से 2019 तक तीन साल की समय सीमा तय कर दी। 2013 के भूमि विधेयक से सहमति संबंधी और सामाजिक प्रभाव के सर्वे वाले प्रावधानों को खत्म करने को लेकर आठ महीने से जारी विवाद को खत्म करते हुए सरकार ने अगस्त में भूमि अधिग्रहण संबंधी कानून को राज्यों पर छोड़ने का फैसला किया और लगातार चौथी बार अध्यादेश जारी करने से बच गई। चौथी बार यह अध्यादेश जारी हो जाता तो यह एक रेकार्ड होता। भाजपा सांसद एसएस आहलुवालिया की अगुआई वाली एक संयुक्त संसदीय समिति इस विधेयक पर विचार कर रही है। कई बार समय विस्तार मांगने के बाद उसने अपनी रिपोर्ट देने के लिए बजट सत्र तक का समय मांगा।
2013 में यूपीए सरकार ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास व पुनर्स्थापन कानून 2013 पारित किया था। इस कानून ने 1894 के ब्रिटिश काल के कानून की जगह ली थी। दिसंबर 2014 में राजग सरकार, यूपीए सरकार के भूमि कानून से पांच क्षेत्रों के लिए भूमि अधिग्रहण करते समय किसानों की सहमति लेने संबंधी उपबंध को हटाते हुए इसमें संशोधन करने के लिए एक अध्यादेश लाई थी। ये क्षेत्र औद्योगिक गलियारे, पीपीपी परियोजनाएं, ग्रामीण अवसंरचना, किफायती मकान और रक्षा थे। साथ ही राजग सरकार ने सामाजिक प्रभाव सर्वे करने की जरूरत को भी दूर कर दिया था। इन संशोधनों ने पूरे विपक्ष को लगभग एकजुट कर दिया और कांग्रेस ने लोकसभा में अपनी संख्या में आई अभूतपूर्व कमी के बावजूद किसानों से संपर्क शुरू कर दिया। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दर्जन भर दलों की रैली की अगुआई करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से गुहार लगाई। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने रामलीला मैदान में किसान रैली भी आयोजित की।
संसद के अंदर और बाहर कड़े विरोध के बाद अध्यादेश की जगह लेने वाले नए विधेयक को संसदीय समिति के पास भेज दिया गया क्योंकि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है। वहां कांग्रेस का वर्चस्व है। विपक्ष ने जहां सरकार को किसान विरोधी बताया वहीं राजग के तीन घटकों शिवसेना, शिरोमणि अकाली दल और स्वाभिमान पक्ष ने भी विधेयक को लेकर अपनी आंखें तरेरते हुए सहमति और सामाजिक प्रभाव के आकलन संबंधी प्रावधान बहाल किए जाने की मांग की। स्वदेशी जागरण मंच सहित संघ के चार अनुषंगी दलों ने भी आपत्तियां जतार्इं।
किसान विरोधी ठप्पा लगने पर नुकसान की आशंका के कारण बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सरकार ने इस मुद्दे पर आगे न बढ़ने का फैसला किया। नीति आयोग की बैठक में कुछ राज्यों ने भी जोर दिया कि उन्हें अपने भूमि अधिग्रहण कानून बनाने की अनुमति दी जानी चाहिए। अध्यादेश का रास्ता त्यागते हुए सरकार ने अगस्त में आखिरकार आदेश जारी कर दिया और किसानों को भूमि अधिग्रहण कानून के तहत दिए जाने वाले लाभों को 13 अन्य कानूनों के तहत किए जाने वाले अधिग्रहणों में भी प्रदान कर दिया।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 में इन 13 कानूनों को एक साल के लिए अधिग्रहण के उद्देश्य से नए भूमि कानून की राहत और पुनर्वास शर्तों को लागू करने से छूट प्रदान की थी। इस शर्त के साथ यह किया गया था कि एक साल के अंदर उन्हें अधिनियम के दायरे में लाया जाएगा। राजग सरकार के अध्यादेश में इन 13 अधिनियमों को नए भूमि कानून के तहत लाया गया, इस कदम की वकालत बाद में सरकार ने अध्यादेश लाने के कारण के तौर पर की। विपक्ष ने इसे स्वीकार नहीं किया।
अन्य अहम फैसले में मंत्रालय ने इस साल सामाजिक आर्थिक व जातीय जनगणना (एसईसीसी) के आंकड़े जारी किए जिससे सरकार के लिए परिवारों की सामाजिक आर्थिक हालत के बारे में सटीक सूचना हासिल करना आसान हो गया। दिसंबर में मंत्रिमंडल ने गरीबी घटाने के लिए केंद्रित व लक्षित हस्तक्षेप के वास्ते ग्रामीण कल्याण कार्यक्रमों में कुछ अहम बदलावों को मंजूरी दे दी।
अक्तूबर में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 2,142.30 करोड़ रुपए के परिव्यय से विश्व बैंक की सहायता प्राप्त ‘नेशनल वाटरशेड मैनेजमेंट प्रोजेक्ट’ (नीरांचल) के कार्यान्वयन संबंधी प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। सितंबर में सूखा और प्राकृतिक आपदा वाले ग्रामीण इलाकों में जॉब कार्ड धारकों को एक वित्त वर्ष में 100 दिन के तय रोजगार के साथ मनरेगा के तहत 50 दिन का अतिरिक्त रोजगार मुहैया कराने का फैसला मंत्रिमंडल ने किया। ग्रामीण इलाकों को आर्थिक, सामाजिक और भौतिक रूप से विकसित बनाने के लिए मंत्रालय ने 5,142.08 करोड़ रुपए के परिव्यय से इस साल श्यामा प्रसाद मुखर्जी अर्बन मिशन (एसपीएमआरएम) भी शुरू किया।