न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच लकीर खींचते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि अदालतें कार्यपालिका का काम नहीं कर सकतीं और दोनों की स्वतंत्रता को सख्ती से कायम रखना होगा। जेटली ने कहा कि अगर कार्यपालिका अपना काम करने में विफल रहती हैं तो न्यायपालिका उसे अपना काम करने का निर्देश दे सकती हैं लेकिन वह कार्यपालिका का काम अपने जिम्मे नहीं ले सकती हैं।
एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जेटली ने कहा कि अगर न्यायपालिका अपना काम करने में विफल रहती है तो कार्यपालिका इस दलील के साथ उसका काम नहीं ले सकती कि बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं। उसी तरह, अदालतें कार्यपालिका का काम नहीं ले सकतीं। उन्होंने कहा कि पहले दो बुनियादी तथ्यों के बारे में स्पष्ट हो जाएं। पहली बात, न्यायपालिका की स्वतंत्रता की निश्चित तौर पर जरूरत है और किसी भी कीमत पर उसे कायम रखा जाना चाहिए। दूसरी बात, न्यायपालिका के पास निसंदेह न्यायिक समीक्षा की शक्ति है। मैं नहीं मानता कि उसपर विवाद करने की किसी को भी शक्ति है। यह लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है। यह दलील कि न्यायपालिका तब दखल देती है जब कार्यपालिका अपना काम करने में विफल रहती है, यह सवाल करने योग्य बात है।
जेटली ने कहा कि जैसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता जरूरी है, वैसे ही शक्तियों का बंटवारा भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि संसदीय कार्य संसद को करना है। कोई और बजट पारित नहीं कर सकता या उसे मंजूरी नहीं दे सकता। जेटली का बयान प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर के उस बयान की पृष्ठभूमि में आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि न्यापालिका तभी हस्तक्षेप करती है जब कार्यपालिका अपने संवैधानिक कर्तव्यों को पूरा करने में विफल रहती है। प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा था कि सरकार को आरोप लगाने की बजाय अपना काम करना चाहिए और लोग अदालतों के पास तभी आते हैं जब कार्यपालिका उन्हें निराश कर देती है।