देश में व्यक्तिगत लोन का बोझ बढ़ता जा रहा है। इसका एक उदाहरण हाल ही में एक सरकारी कर्मचारी ने Reddit पर अपनी परेशानी शेयर की है। जहां उसने बताया है कि उसकी सैलरी 62 हजार रुपये है। वही, उसे रिटायरमेंट के बाद 30 हजार रुपये पेंशन मिल सकती है लेकिन उस पर अभी 29 लाख रुपये का कर्ज है। उसने यह कर्ज 9 से अधिक जगहों से लिया हुआ है। अब उसकी रिटायरमेंट में बस 4.5 साल बाकी हैं। उसने कहा कि पर्सनल लोन और सोसाइटी लोन ने उसे बड़े वित्तीय संकट में डाल दिया है। उन कर्जदारों ने कथित तौर पर कानूनी नोटिस जारी किए हैं और धमकी भी दी है। अब वो क्या करें…

उन्होंने लिखा, ‘मैंने खर्चों को घटाकर 27,000 रुपये कर दिया है और इसे और घटाकर 22,000 रुपये कर सकता हूं, लेकिन EMI और जरूरी बकाया पहले ही मेरी मौजूदा क्षमता से अधिक हो गए हैं।’ 774 के अच्छे क्रेडिट स्कोर के बावजूद, बढ़ते दबाव ने उन्हें लोन कंसोलिडेशन पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है, जिसमें IDFC या HDFC जैसे किसी नए बैंक से 6-7 साल की लंबी अवधि के लिए 20 लाख रुपये का पर्सनल लोन लेना भी शामिल है।

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रिटायरमेंट से पहले बनाना है एक बेहतर रिकॉर्ड

उन्होंने आगे लिखा, ‘मैं सैलरी में कटौती से बचना चाहता हूं, रिटायरमेंट से पहले एक बेहतर रिकॉर्ड बनाए रखना चाहता हूं और अपनी कुल EMI का बोझ 40,000 रुपये महीने से कम करना चाहता हूं।’

क्योंकि, उनका मौजूदा बैंक एसबीआई इसमें शामिल ऋणदाताओं में से एक है। इसी वजह से उन्हें यकीन नहीं है कि उनसे नया लोन लेना व्यवहार्य होगा या नहीं। इस पोस्ट पर कई यूजर्स की प्रतिक्रिया आई। वही, कई लोगों ने उन्हें सलाह दी।

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इस पोस्ट पर यूजर्स की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं

एक यूजर ने EMI के बोझ को कम करने के लिए लोन कंसोलिडेट करने की सलाह दी, लेकिन आगाह किया कि रिटायरमेंट के इतने करीब लोन देने को तैयार बैंक ढूंढना मुश्किल होगा। वही, एक अन्य यूजर ने रिटायरमेंट फंड में से पैसे निकालने का सुझाव दिया।

वही, एक यूजर ने लिखा, ‘अगर आप अपनी कुल इनकम का 70 फीसदी से अधिक EMI के तौर पर चुका रहे हैं, तो कोई भी बैंक नया लोन नहीं देगा या आपके कर्ज को कंसोलिडेट नहीं करेगा।’ कुछ अन्य लोगों ने अधिक ईएमआई वाले छोटे लोन को पहले प्राथमिकता देने को कहा और लिखा, ‘कहीं से पैसे लीजिए और छोटे लोन चुका दीजिए। फिर कंसोलिडेट करने से पहले अपनी सिबिल रिपोर्ट में उनके बंद दिखने के लिए कुछ महीने इंतजार कीजिए।’