दुनिया भर में आज अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस यानी लेबर डे मनाया जा रहा है। इसे मजदूरों के योगदान और ऐतहासिक मजदूर आंदोलन की याद में मनाया जाता है। भारत में पहली बार इसे 1 मई, 1923 को लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान और कॉमरे़ड सिंगारवेलर के आह्वान पर मनाया गया था। इस दिन सिंगारवेलर ने मद्रास में अलग-अलग जगहों पर दो बैठकें आयोजित की थीं। इनमें से एक ट्रिप्लिकेन बीच पर आयोजित की गई थी और दूसरी मद्रास हाई कोर्ट के सामने। देश के पिछड़े वर्ग के लिए संघर्ष करने वाले सिंगारवेलर ने उस दिन प्रस्ताव पारित किया था कि सरकार को हर साल इस दिन मजदूरों के सम्मान में अवकाश घोषित करना चाहिए।
दरअसल अमेरिका के शिकागो के हेमार्केट में 1886 को मजदूर एक शांतिपूर्ण रैली कर रहे थे, जो बाद में पुलिस के साथ एक हिंसक झड़प में तब्दील गई थी। इस घटना में 4 नागरिकों और 7 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी। इसके बाद मजदूरों के अधिकारों, वर्किंग आवर्स में कमी, कामकाज की बुरी हालत जैसे मुद्दों के लिए लड़ रहे लोगों को बड़े पैमाने पर गिरफ्तार किया गया था। उन्हें आजीवन कैद की सजाएं दी गईं और कई लोगों को फांसी तक दी गई। सरकार की ज्यादती के चलते मारे गए लोगों को ‘हेमार्केट शहीद’ कहा जाता है। इस घटना ने पूरी दुनिया में मजदूरों के आंदोलन को एक नई गति दी।
अमेरिका ने 1916 में दी 8 घंटे काम की मंजूरी: अमेरिका ने इसके बाद 1894 में मजदूर दिवस के आयोजन को मंजूरी दी थी। वहां सितंबर के पहले सोमवार को इसका आयोजन किया जाता है। इसके बाद कना़डा में भी इस व्यवस्था को अपना लिया गया। 1 मई को मजदूर दिवस मनाने की घोषणा 1889 में आयोजित दूसरे वैश्विक मजूदर सम्मेलन में की गई थी। इसके बाद आखिरकार 1916 में अमेरिका ने वर्किंग आवर्स को 8 घंटे करने का फैसला लिया था। 1917 में हुई रूसी क्रांति के बाद सोवियत यूनियन ने 1 मई को मजदूर दिवस के आयोजन को मंजूरी दी। यही नहीं राजधानी मॉस्को में मजदूर दिवस के मौके पर परेड के आयोजन भी किए जाते थे। इसमें दिग्गज कम्युनिस्ट लीडर मौजूद होते थे।
Coronavirus से जुड़ी जानकारी के लिए यहां क्लिक करें: कोरोना वायरस से बचना है तो इन 5 फूड्स से तुरंत कर लें तौबा | जानिये- किसे मास्क लगाने की जरूरत नहीं और किसे लगाना ही चाहिए |इन तरीकों से संक्रमण से बचाएं | क्या गर्मी बढ़ते ही खत्म हो जाएगा कोरोना वायरस?