भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा कि कर्ज की किस्तें चुकाने में छूट की अवधि के दौरान ब्याज में राहत नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट में मोराटोरियम की अवधि में ब्याज में राहत को लेकर सुनवाई के दौरान केंद्रीय बैंक ने यह बात कही। आरबीआई ने कहा कि ऐसा करना देश के बैंकों की वित्तीय स्थिरता के लिहाज से ठीक नहीं होगा। इसके अलावा जमाकर्ताओं और फाइनेंशल सेक्टर पर भी इसका विपरीत असर देखने को मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दाखिल कर आरबीआई ने कहा कि 31 तक किस्तों में छूट सिर्फ स्थगन है, इसे माफी के तौर पर नहीं लिया जा सकता। आरबीआई ने कहा कि यदि ब्याज में राहत दी जाती है तो बैंकों को 2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
केंद्रीय बैंक ने कहा कि आरबीआई ने कर्ज के पेमेंट को लेकर राहत देने की कोशिशें की हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि ब्याज में जबरन राहत दी जाए। ऐसा करना बैंकों की आर्थिक स्थिरता और सेहत को दांव पर लगाने जैसा होगा। यही नहीं बैंकों के प्रभावित होने से जमाकर्ताओं के हितों पर भी विपरीत असर पड़ेगा।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर मांग की गई थी कि बैंकों को मोराटोरियम की अवधि के दौरान कर्ज पर ब्याज भी नहीं लगाना चाहिए। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय बैंक को नोटिस जारी किया था, जिसके जवाब में आरबीआई ने यह तर्क दिया है। मार्च में आरबीआई ने तीन महीने के लिए यानी मई तक सभी तरह के टर्म लोन में छूट का ऐलान किया था।
इसके बाद एक बार फिर से आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने 23 मई को तीन और महीनों के लिए किस्तों में छूट का ऐलान किया। अब 31 अगस्त तक होम लोन, ऑटो लोन, पर्सनल लोन समेत सभी तरह के टर्म लोन्स की किस्तों को अदा करने पर राहत दी गई है। क्रेडिट कार्ड्स पर बकाया रकम को भी इस दायरे में रखा गया है। हालांकि किस्तों में छूट की अवधि के दौरान भी कर्ज पर चल रहा ब्याज जारी रहेगा और मोराटोरियम की अवधि के बाद लाभार्थियों को ब्याज की रकम चुकानी होगी।