डोनाल्ड ट्रंप जब पहली बार वर्ष 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहे थे तब, महिलाओं के संग उनके मनचले बरताव के सबूत फोटो, वीडियो और बयानबाजियों के तौर पर सामने आए थे। पहली बार राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा करके जब वे पद से हटे और दूसरी बार चुनाव लड़े तो उन्होंने जो बाइडन के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। बाइडन के हाथों हारने के बाद उनके ‘पुराने पाप’ फिर से उनका पीछा करने लगे। उन्हें ऊपर एक महिला को यौन संबंधों के बारे मुँह बंद रखने के लिए पैसे देने के मामले में अमेरिकी अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया। उन्हें सजा सुनाने को लेकर रार के दौरान ही अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए तीसरी बार चुनाव हो गया और ट्रंप दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बन गये।

दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद से ट्रंप एक अलग तरह के मनचलेपन के शिकार दिखने लगे हैं। इसे हम आर्थिक मनचला-पन कह सकते हैं। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में भारत, चीन, ब्राजील इत्यादि देशों पर टैरिफ दर बढ़ाने की घोषणाएँ निहायत ही मनमाने तरीके से कीं। चीन और अमेरिका के बीच टैरिफ को लेकर जैसी रस्साकशी हुई वह सब्जी मण्डी में लगने वाली बोलियों की याद दिला गया। चढ़ा-चढ़ी वाले दरों की घोषणा के बाद अमेरिका और चीन के बीच काफी कम दर पर आपसी सहमति बनी। जाहिर है कि ट्रंप द्वारा किसी देश पर मनमाने तरीके से कई गुना ज्यादा टैरिफ दर की घोषणा उस देश पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ाने के लिए की जाती है जिसका इस्तेमाल वह अपने फायदे वाले व्यापार समझौते करने के लिए करते हैं।

अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद ग्रेगरी मीक ने डोनाल्ड ट्रंप के ताजा बरताव को टैरिफ टैंट्रम कहा है मगर ट्रंप के इस टैंट्रम यह सच भी अनचाहे ही उजागर हो गया है कि अमेरिका पिछले एक सदी से जिस मुक्त व्यापार (फ्री ट्रेड) की पूँजीवादी विचारधारा का अगुवा बना हुआ है, वह तभी तक मुक्त है जब तक पूँजीवाद के अगुवा देशों को वह पसन्द आए। डोनाल्ड ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि भारत द्वारा रूस से कच्चा तेल खरीदने के कारण वह टैरिफ की दर बढ़ा रहे हैं। एक समय था कि डोनाल्ड ट्रंप दावा करते थे कि वो चुटकी बजाकर रूस और यूक्रेन का युद्ध रुकवा देंगे। अब वो रूस द्वारा सैन्य कार्रवाई न रोकने का ठीकरा भारत पर फोड़ना चाह रहे हैं। रूस और यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में भी अमेरिका-यूरोप का वर्चस्ववादी रवैया है। व्लादिमीर पुतिन नाटो देशों के विस्तारवादी रवैये को ही हमले का प्रमुख कारण बताते रहे हैं। अब जब रूस अमेरिका-यूरोप के दबाव में नहीं आ रहा है तो ट्रंप बहानेबाजी करके भारत की बाँह मरोड़ना चाह रहे हैं।

यानी फ्री ट्रेड वहीं तक फ्री है जहाँ तक अमेरिका चाहे! दो देश आपस में लड़ रहे हैं तो किसी तीसरे देश को किसी एक की तरफदारी करना किस तरह की फ्रीडम है! आधुनिक दैनिक जीवन से लेकर आधुनिक कल-कारखाने तक ऊर्जा पर निर्भर हैं और कच्चा तेल ऊर्जा के सबसे प्रमुख स्रोतों में एक है। अमेरिका ने सामरिक या राजनीतिक कारणों से वेनेजुएला और ईरान जैसे देशों के कच्चे तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है! अभी एक हफ्ते पहले ही चीन ने भी भारत को दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Materials) के निर्यात पर रोक लगा दी थी। चीन का निर्णय भी राजनीतिक था न कि आर्थिक। यदि ताकतवर देशों के राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से ही बाकी दुनिया को व्यापार करना है तो फिर ऐसा ट्रेड फ्री कैसे कहा जा सकता है!

ताजा विवाद में भी यही बात छनकर आ रही है कि अमेरिका अपने एग्री और डेयरी प्रोडक्ट के लिए भारत के बाजार के दरवाजे खुलवाना चाहता है इसलिए ही रूस के कन्धे पर रखकर टैरिफ की बन्दूक चला रहा है। कृषि और दग्ध उत्पादन ऐसे सेक्टर हैं जो भारत जैसे विकासशील देश की बड़ी आबादी को रोजगार और आजीविका प्रदान करते हैं। भारत का कृषि और डेयरी सेक्टर अमेरिका के लिए पूरी तरह खुल जाएगा तो इससे एक अमीर देश और अमीर बनेगा और एक विकासशील देश के करोड़ों साधारण लोग पहले उपभोक्ता मात्र बनकर रह जाएँगे। साफ है कि विश्व बाजार में सस्ती दर पर मिल रहा कच्चा तेल खरीदने के एवज में भारत करोड़ों साधारण लोगों के लिए आर्थिक बदहाली के दरवाजे खोलने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

यहाँ जानिए टैरिफ को लेकर भारत-अमेरिका के बीच चल रहे रस्साकशी से जुड़े हर सवाल का जवाब

डोनाल्ड ट्रंप के रवैये से रूस की कम्युनिस्ट क्रान्ति के नेता व्लादिमीर लेनिन के शब्द याद आते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि पूँजीवाद (कैपिटलिज्म) साम्राज्यवाद की सर्वोच्च व्यवस्था है। लेनिन ने कहा था, “पूँजीवाद वैश्विक उत्पीड़न के सिस्टम के रूप में विकसित हो चुका है जिसके तहत कुछ ‘विकसित’ देश दुनिया के बहुसंख्यक लोगों का गला घोंट रहे हैं। इस ‘लूट’ को दुनिया के दो-तीन ताकतवर लुटेरे हथियारबंद देश आपस में बाँट लेते हैं…जो लूट के लिए किए जाने वाली लड़ाइयों में पूरी दुनिया को घसीट लेते हैं।”

अमेरिका तो पूरी दुनिया में फ्री ट्रेड का प्रवक्ता है! ऐसे में राजनीतिक कारणों से टैरिफ की दर घटा-बढ़ाकर क्या दुनिया को यह सन्देश नहीं दे रहा है कि फ्री ट्रेड मूलतः ताकतवर देशों द्वारा दूसरे देशों के संसाधनों के दोहन का कूटनीतिक तरीका मात्र है! फ्री ट्रेड के ज्यादातर प्रवक्ता पहले छिपे तौर पर अपने मंसूबे पूरे करते थे। डोनाल्ड ट्रंप खुले तौर पर ताकत का नंगा नाच दिखा रहे हैं। यह जरूर है कि ट्रंप के इस बरताव के बाद लेनिन का विचार ज्यादा विचारणीय लगने लगा है।