अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ने के कारण देश में पिछले कुछ समय में पेट्रोल डीजल की कीमत में अच्छा खासा उछाल आया है, जिसके कारण लोगों को पेट्रोल डीजल पर पहले के मुकाबले अधिक खर्च करना पड़ रहा है। भारत में महंगे पेट्रोल-डीजल के पीछे एक बड़ी वजह केंद्र और राज्य सरकार की ओर लगाया टैक्स है। पेट्रोल डीजल पर लगने वाले टैक्स को लेकर हाल ही में देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले वैट से भारत में राज्यों ने 49,229 करोड़ रुपए की कमाई की है।
रिपोर्ट में कहा गया कि ईंधन पर वैट (VAT) एक ऑटोमेटिक स्टेबलाइजर के रूप में काम करता है। इसका मतलब यह है कि जब भी ईंधन का प्राइस बढ़ता है तो राज्यों को वैट से होने वाली आय में भी इजाफा होता है और जब तेल की कीमतें कम होती है तो वैट से होने वाली आय में कमी आती है। हमारा अनुमान है कि राज्यों को ईंधन पर लगने वाले वैट से राज्यों को अब तक 49,229 करोड़ रुपए की अतिरिक्त कमाई हुई है। जो रेवेन्यू से 34,208 करोड़ रुपए ज्यादा है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि कोविड -19 के बाद राज्यों की वित्तीय स्थिति में काफी सुधार आया है। यह उनकी कम उधारी लेने से भी जाहिर होता है। अगर इन सभी बातों को ध्यान में रखकर एक्साइज ड्यूटी में कमी को समायोजित किया जाए तो राज्यों को बजट अनुमानों के अतिरिक्त तेल राजस्व पर कोई घाटा या फायदा नहीं हुआ है। इस कारण राज्य बिना वेट कम किए आसानी से औसत डीजल पर 2 रुपए और पेट्रोल पर 3 रुपए कम कर सकते हैं।
रिपोर्ट में बताया गया कि महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य जीडीपी के मुकाबले कर्जा काफी कम है। आसानी से 5 रुपए तक ईंधन के दाम कम कर सकते हैं। वहीं हरियाणा, तेलंगाना, राजस्थान और अरुणाचल प्रदेश में जीडीपी-टैक्स अनुपात 7 फ़ीसदी से अधिक है इन राज्यों के पास ईंधन में टैक्स को समायोजित करने की पर्याप्त वजह हैं।