कर्ज बोझ तले दबे उद्योगों की ब्याज दर में कटौती की मांग पर कड़े शब्दों में जवाब देते हुये रिजर्व बैंक के निवर्तमान गवर्नर रघुराम राजन ने सोमवार (20 जून) को कहा कि बैंकों को चिंता रहती है कि उनका कर्ज वापस होगा कि नहीं, इसी जोखिम के चलते वह ऊंची दरों पर कर्ज देते हैं। राजन ने कहा कि उद्योगों को कम ब्याज दर के लिये रिण वसूली में सुधार लाने बैंकों के प्रयासों का निश्चित रूप से समर्थन करना चाहिए। राजन ने कहा कि पिछले समय में दरों में अधिक ज्यादा कटौती के सुझाव को खारिज करने में रिजर्व बैंक ने बुद्धिमानी बरती है। उन्होंने यह भी कहा कि दशकों से उच्च मुद्रास्फीति के कारण छिपे कर के रूप में बचत करने वाले मध्यम वर्ग तथा गरीबों पर प्रभाव पड़ा जब उद्योगपति तथा सरकारें ऊंची मुद्रास्फीति के चलते वास्तविक तौर पर नकारात्मक ब्याज दरों का भुगतान कर रहे थे।
गवर्नर ने कहा कि उन्हें जमा दरों में कटौती को लेकर पेंशनभोगियों की शिकायत वाले कई पत्र मिले। उन्होंने कहा कि वह यह समझते हैं कि जब पेंशनभोगी यह देख रहे हैं कि उनकी ब्याज आय कम हो रही है, आखिर वे परेशान क्यों नहीं हों। उन्होंने आगे कहा कि मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के लक्ष्य के ऊपरी स्तर के करीब है जो यह बताता है कि हम ज्यादा आक्रमक नहीं रहे और इस लिहाज से दरों में अधिक कटौती की सलाह नहीं मानकर हमने सही फैसला किया है।
टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च में एक व्याख्यान में उन्होंने कहा, ‘ऊंची मुद्रास्फीति धनवानों, अधिक कर्ज वाले लोगों, उद्योगपतियों की मदद कर सकती है क्योंकि उनका कर्ज उनकी बिक्री आय के मुकाबले कम होता है। वहीं गरीब दैनिक मजदूर को यह प्रभावित करती है क्योंकि उनकी मजदूरी मुद्रास्फीति से जुड़ी नहीं होती है।’ दूसरे कार्यकाल से इनकार की घोषणा के बाद राजन ने कहा कि वह कभी भी वृद्धि पर जोर देने को लेकर मुद्रास्फीति पर नियंत्रण नहीं छोड़ेंगे। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि वास्तव में अल्पकाल में कई बार मुद्रास्फीति तथा वृद्धि के बीच किसी एक को चुनने की स्थिति होती है।
उन्होंने कहा, ‘आम लोगों की भाषा में कहा जाए तो अगर केंद्रीय बैंक ब्याज दर में 1.0 प्रतिशत की कटौती करता है और बैंक इसका लाभ ग्राहकों को देते हैं तो मांग बढ़ेगी और कुछ समय के लिए वृद्धि होगी…।’ राजन ने कहा, ‘शेयर बाजार में कुछ दिनों के लिए तेजी आ सकती है। लेकिन आप कुछ ही समय के लिए लोगों को मूर्ख बना सकते हैं। अगर अर्थव्यवस्था पूरी क्षमता पर उत्पादन कर रही है तो फिर हमें जल्द ही कमी देखने को मिलेगी और फिर मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ेगी।’