GST Meeting 2025: जीएसटी काउंसिल की दो दिवसीय बैठक आज यानी 3 सितंबर 2025 से शुरू हो गई है। जीएसटी काउंसिल की इस 56वीं बैठक में हाल के वर्षों के सबसे महत्वपूर्ण सुधार प्रस्तावों में से एक (जीवन और स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी से पूरी तरह छूट) पर विचार किए जाने की उम्मीद है। अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है, तो क्या इससे मिडिल क्लास को राहत मिल सकती है।

जीएसटी दरों को रीजनेबल बनाने पर मंत्रिसमूह (GoM) पहले ही इस प्रस्ताव का समर्थन कर चुका है। बिहार के उपमुख्यमंत्री और जीओएम के संयोजक सम्राट चौधरी ने हाल ही में कहा था कि पैनल सभी व्यक्तिगत जीवन और स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम को जीएसटी से छूट देने के पक्ष में है।

पॉलिसीहोल्डर्स को बेनिफिट ट्रांसफर करने पर चिंताए

जहां केंद्र सरकार जीवन और स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम को जीएसटी से मुक्त करने के लिए उत्सुक है, वहीं कुछ राज्यों ने कथित तौर पर चेतावनी दी है कि यह कदम तभी कारगर होगा जब बीमा कंपनियां वास्तव में इसका लाभ पॉलिसीधारकों को देंगी।

इस बात की चिंता है कि बीमा कंपनियां टैक्स बेनिफिट बरकरार रखकर अप्रत्याशित लाभ न कमा लें, जबकि ग्राहक वही प्रीमियम चुकाते रहें।

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क्या है एक्सपर्टस् का कहना?

जोतवानी एसोसिएट्स के कंपनी सचिव और पार्टनर दिनकर शर्मा के अनुसार, “पहली नजर में जीएसटी छूट उपभोक्ता को राहत देती दिखती है, क्योंकि इससे अंतिम प्रोडक्ट या सेवा पर टैक्स नहीं लगता। लेकिन हकीकत यह है कि ऐसी छूट से कारोबारियों को पहले से इनपुट पर दिए गए GST पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) लेने का हक नहीं मिलता। इसका सीधा असर उनकी लागत पर पड़ता है।”

बॉम्बे चार्टर्ड अकाउंटेंट्स सोसाइटी के सचिव, सीए मंदार तेलंग कहते हैं, “हालांकि आधिकारिक स्पष्टीकरण का इंतजार करना जरूरी है, लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि ऐतिहासिक रूप से स्वास्थ्य और जीवन बीमा योजनाओं के लिए कुछ छूटें बरकरार रखी गई हैं, जो सर्विस टैक्स व्यवस्था की प्रथाओं को जारी रखती हैं। वर्तमान जीएसटी मूल्यांकन नियमों के नियम 32(4) से यह स्पष्ट है कि जीवन बीमा पॉलिसियों के मामले में, इरादा केवल प्रीमियम के उस हिस्से पर टैक्स लगाने का है जो जीवन बीमा में रिस्क कवर के लिए है, न कि उस प्रीमियम राशि पर जो पॉलिसीधारक की ओर से निवेश/बचत के लिए आवंटित की जाती है।”

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छूट हमेशा कीमतें कम क्यों नहीं कर सकती?

सबसे बड़ी परेशानी आईटीसी (इनपुट टैक्स क्रेडिट) न मिलना है। अगर आईटीसी नहीं मिलता, तो इंश्योरेंस कंपनियां टेक्नॉलॉजी, कंसल्टिंग या बिजली-पानी जैसी सेवाओं पर दिए गए GST का फायदा नहीं उठा पातीं यानी वो खर्च वसूल नहीं हो पाता।

दिनकर शर्मा के अनुसार, “ऐसी स्थिति में कीमतें कम होने के बजाय छुपी हुई लागत बढ़ सकती है। खास तौर पर कम मुनाफे पर काम करने वाली कंपनियां ये खर्च ग्राहकों से वसूलने पर मजबूर हो सकती हैं। नतीजा ये होगा कि छूट का असली लाभ उपभोक्ता तक नहीं पहुंच पाएगा या बहुत कम रह जाएगा।”