राज्यों को जीएसटी का भुगतान केंद्र सरकार के लिए आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति बन गई है। यदि केंद्र सरकार नियम के मुताबिक राज्य सरकारों को जीएसटी का भुगतान करती है तो उसे अपने खजाने में से अतिरिक्त राशि देनी होगी और यदि ऐसा नहीं करती है तो राजनीतिक विरोध का सामना करना होगा। दरअसल केंद्र सरकार ने कहा है कि उसके पास जीएसटी के रेवेन्यू में राज्यों की हिस्सेदारी चुकाने के लिए फंड नहीं है। 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद यह पहला मौका है, जब केंद्र सरकार ने राज्यों के हिस्से को चुकाने में अपने हाथ खड़े किए हैं। आइए जानते हैं, कैसे जीएसटी पर बिगड़ती गई स्थिति…

पिछले साल अगस्त से ही घट रहा कलेक्शन: केंद्रीय वित्त सचिव अजय भूषण पांडेय ने संसदीय पैनल को राज्यों के जीएसटी के हिस्से को लेकर यह जानकारी दी है। उनका कहना है कि मौजूदा फॉर्म्युले के तहत सरकार राज्यों को जीएसटी क्षतिपूर्ति देने की स्थिति में नहीं है। दरअसल राज्यों को जीएसटी क्षतिपूर्ति न दे पाने की वजह मौजूदा आर्थिक मंदी ही नहीं है। अगस्त 2019 के बाद से ही लगातार जीएसटी कलेक्शन में कमी की स्थिति है। सरकार की उम्मीद थी कि हर महीने एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का जीएसटी कलेक्शन होगा, लेकिन ऐसा सिर्फ 4 बार ही हो सका है। लेकिन अब कोरोना संकट ने पूरी तरह से कमर तोड़ने का ही काम किया है। फिलहाल राज्यों को जीएसटी का कम्पेन्सेशन सरकार इस साल अप्रैल से ही नहीं दे पाई है।

जितना मिला नहीं, उससे ज्यादा पेमेंट: जून तिमाही में मोदी सरकार को जीएसटी कलेक्शन में 40 पर्सेंट की कमी का सामना करना पड़ा है। उल्लेखनीय है कि केंद्र की ओर से 2019-20 में राज्यों को 1.65 लाख करोड़ रुपये जीएसटी क्षतिपूर्ति के तौर पर दिए गए थे, जबकि जीएसटी क्षतिपूर्ति सेस के तहत कलेक्शन सिर्फ 95,444 करोड़ रुपये ही था।

क्या है जीएसटी क्षतिपूर्ति का फॉर्म्युला: जीएसटी के नियमों के मुताबिक हर राज्य को केंद्र की ओर से रेवेन्यू के घाटे की एवज में पर्सेंट की सालाना ग्रोथ रेट से मुआवजा दिया जाएगा। इसके लिए 2015-16 को बेस ईयर माना गया है। अब केंद्र सरकार के सामने कोरोना संकट में जीएसटी क्षतिपूर्ति की पेमेंट एक समस्या बन गई है। सरकार का कहना है कि जितना मासिक कलेक्शन होता है, उससे दोगुना देने की स्थिति है। सरकार के मुताबिक हर महीने राज्यों को करीब 14,000 करोड़ रुपये जीएसटी कम्पेन्सेशन दिया जाना है, जबकि कलेक्शन 7 से 8 हजार करोड़ रुपये के बीच ही है।