जीएसटी को लेकर सरकार के पास समय कम होता जा रहा है और अगले वर्ष अप्रैल तक राष्ट्रीय स्तर पर महत्वाकांक्षी अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था जीएसटी को लागू करने के लिए वह संसद का शीतकालीन सत्र समय से पूर्व बुलाए जाने पर विचार कर रही है।

सर्वाधिक महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में से एक जीएसटी के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार के लिए समय पूर्व संसद का शीत सत्र आहूत करना जरूरी हो गया है जो पारंपरिक रूप से नवंबर महीने के तीसरे सप्ताह से शुरू होता है। लेकिन अब सरकार के लिए यह अनिवार्य हो गया है कि वह संविधान संशोधन विधेयक को पहले ही पखवाड़े में पारित कराए ताकि उसके बाद कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाएं इसकी पुष्टि कर सकें।

अधिकतर राज्यों की विधानसभाओं का शीत सत्र नवंबर के अंतिम सप्ताह और दिसंबर के पहले सप्ताह में शुरू होता है और यह महत्वपूर्ण है कि तब तक संसद में यह विधेयक पारित हो जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि राज्य इसकी पुष्टि कर सकें। सरकारी सूत्रों ने यह जानकारी दी।

संविधान का अनुच्छेद 368 कहता है कि कुछ संविधान संशोधन विधेयकों को कम से कम 50 फीसदी राज्य विधानसभाओं की पुष्टि की जरूरत होती है और जीएसटी भी उन्हीं में से एक है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना संबंधी 99वें संविधान संशोधन विधेयक को भी राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की जरूरत है।

लेकिन दूसरी ओर भू सीमा समझौते की पुष्टि वाले 100वें संविधान संशोधन विधेयक को राज्यों की मंजूरी की जरूरत नहीं थी। संसद द्वारा पारित किए जाने के कुछ ही दिन के भीतर राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर कर इसे अधिनियम का रूप दे दिया था।

सरकार के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, ‘‘कुछ ऐसे संविधान संशोधन विधेयक हैं जो उच्च न्यायपालिका के ढांचे को प्रभावित करते हैं जिसमें उच्चतम न्यायालय और 24 उच्च न्यायालय हैं। उसके बाद कुछ ऐसे विधेयक हैं जो केंद्र और राज्यों की शक्तियों के संबंध में संघीय ढांचे पर प्रभाव डालने वाले होते हैं। ऐसे विधेयकों की राज्य विधानसभाओं द्वारा पुष्टि किया जाना जरूरी है।’’

जीएसटी के कानून का रूप लेकर लागू होने से पूर्व सरकार की योजना अगले वर्ष के बजट सत्र में इस संविधान संशोधन विधेयक को प्रभावी करने में सक्षम बनाने वाले अन्य विधेयक को पारित करने की है।

सरकारी पदाधिकारी ने कहा कि संबंधित विधेयक अपने आप में काफी ‘‘भारी’’ दस्तावेज है। सरकार को जीएसटी विधेयक को पारित कराने के लिए संसद के मानसून सत्र की विस्तारित बैठक बुलाने की अपनी योजना को छोड़ना पड़ा था। इसलिए अब वह बिहार विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद इस विधेयक को पारित कराने के लिए शीत सत्र को समय से पहले बुलाना चाहती है जिसे मोदी सरकार के आर्थिक सुधार एजेंडे के एक बेहद महत्वपूर्ण भाग के रूप में देखा जा रहा है।

संसद का विशेष सत्र आहूत करने की सरकार की योजना को पलीता लगाने वाली कांग्रेस से ‘‘नकारात्मक राजनीति छोड़ने’’ को कहते हुए संसदीय मामलों के मंत्री एम वेंकैया नायडू ने पिछले सप्ताह कहा था कि जीएसटी विधेयक में अभी भी एक अप्रैल की समय सीमा तक काम पूरा करने की संभावना है। उन्होंने इसके साथ ही शीत सत्र जल्द बुलाने की इच्छा जाहिर की थी।

संसद को जहां जीएसटी को समक्ष बनाने वाले संबंधित विधेयक को पारित करने की जरूरत है वहीं राज्यों को भी राष्ट्रव्यापी कर को लागू करने वाले जीएसटी को पेश करने के लिए अपने अपने विधेयकों को पारित कराना होगा।

जीएसटी विभिन्न केंद्रीय अप्रत्यक्ष करों को अपने में समाहित कर लेगा जिनमें केंद्रीय उत्पाद शुल्क, प्रतिपूरक शुल्क और सेवा कर, राज्य स्तरीय मूल्य संवर्धित कर (वैट), चुंगी, प्रवेश शुल्क तथा लग्जरी टैक्स समेत अन्य विभिन्न प्रकार के कर शामिल हैं।