व्यापार संबंधी हित से जुड़ी मूल चिंताओं का समाधान नहीं होने पर आखिरकार भारत ने चीन के समर्थन वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) समझौते से बाहर रहने का फैसला किया है। व्यापार चिंताओं के अलावा समझौते से बाहर निकलने के कारणों में से एक सरकार पर विपक्ष का हमला, महाराष्ट्र-हरियाणा चुनाव परिणाम, उद्योग जगत का विरोध और संघ परिवार की तल्खी भी रही। कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने RCEP को मंदी का कारण बताया। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने शनिवार को पार्टी नेताओं से कहा कि यह किसानों, एसएमई और दुकानदारों के लिए कठिनाई का कारण बनेगा। उन्होंने कहा, ‘हम अन्य देशों से कृषि उपज सहित दूसरे उत्पादों के डंपिंग ग्राउंड बनने के लिए बीमार हो सकते हैं।

सिर्फ विपक्षी दल ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने व्यापार समझौते में बहुत अधिक पैदावार के खिलाफ चेतावनी दी थी। संगठन ने कहा कि इससे घरेलू बाजार पर नाकारात्मक असर पड़ेगा। इस समझौते सरकार के पीछे हटने की प्रमुख वजहों में से एक यह है कि RCEP का उपयोग चीन के साथ बाजार की तालाश के रूप में किया जाता और चीन के साथ भारत का एक बड़ा व्यापार घाटा है, जिसने अतीत मे भारत के अनुरोधों को नजरअंदाज करने का काम किया है।

उल्लेखनीय है कि RCEP में शामिल नहीं होने का फैसला एक नाटकीय अंदाज में आया, जिसमें बताया गया कि सरकार ने पिछले कुछ दिनों अपना रुख इस मुद्दे पर कैसे स्पष्ट किया। पीएम मोदी ने कहा, ‘जब मैं आरसीईपी करार को सभी भारतीयों के हितों से जोड़कर देखता हूं, तो मुझे सकारात्मक जवाब नहीं मिलता। ऐसे में न तो गांधीजी का कोई जंतर और न ही मेरी अपनी अंतरात्मा आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति देती है।’

खास बात है कि इस घटनाक्रम से बमुश्किल ही 48 घंटे पहले केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने RCEP मुद्दे पर विपक्ष को एक साथ लाने की कोशिश करने पर कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी पर निशाना साधा था। कांग्रेस विपक्षी दलों को यह सुझाव देकर सरकार को घेरने की कोशिश में जुटी थी RCEP में शामिल होने से चीन को मदद मिलेगी, जो चीन-अमेरिकी व्यापार मतभेदों के बीच अपने हित साधने के लिए इसके लिए बेताब दिख रहा है।

कांग्रेस की इस कोशिश पर पीयूष गोयल ने ट्वीट कर कहा, ‘श्रीमती सोनिया गांधी जी अचानक RCEP और FTA मुद्दे पर जाग गई है। तब वो कहां थीं जब उनकी सरकार ने आसियान देखों के लिए अपने बाजार का 74 फीसदी हिस्सा खोल दिया, मगर इंडोनेशिया जैसे अमीर देशों ने सिर्फ 50 फीसदी खोला।’

उन्होंने कहा कि साल 2007 में तब सोनिया गांधी कहां थीं जब उनकी सरकार ने इंडिया-चाईना एफटीए संभावना का पता लगाने पर सहमति दी थी। उम्मीद है कि पूर्व पीएम डॉक्टर मनमोहन सिंह इस अपमान के खिलाफ बोलेंगे।

बता दें कि भारत के समझौते से बाहर रहने की घोषणा के बाद 15 आरसीईपी सदस्य देशों ने बयान जारी कर मुक्त व्यापार करार पर अगले साल हस्ताक्षर करने की प्रतिबद्धता जताई।