मुकेश अंबानी ने 2016 में रिलायंस जियो की शुरुआत की थी। उसके बाद से अब तक देश के टेलीकॉम सेक्‍टर पूरा नक्‍शा ही बदल गया है। देश में अब कुछ ही टेलीकॉम कंपनियां रह गई है। वहीं वह देश के टेलीकॉम सेक्‍टर में जबरदस्‍त गेमचेंजर साबित हुआ है। अब मुकेश अंबानी ने ग्रीन एनर्जी की ओर कदम बढ़ा दिया है। एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति, मुकेश अंबानी की भारत में जीरो-कार्बन हार्डवेयर को बढ़ाने के लिए 10 बिलियन डॉलर की योजना है। रिलायंस इंडस्ट्रीज फोटोवोल्टिक मॉड्यूल, बैटरी, फ्यूल सेल और महत्वपूर्ण रूप से हाइड्रोजन का प्रोडक्‍शन करने के लिए इलेक्ट्रोलाइज़र बनाने के लिए चार बड़े “गीगा फैक्‍ट्री” को विकसित करने की योजना पर काम कर रहा है।

रिलायंस की य‍ह बड़ी योजनाओं में से एक है, लेकिन सभी डिटेल्‍स सामने नहीं आ सकी है। लेकिन रिलायंस की ओर से जो टारगेट सेट किया गया है उसके लिए मौजूदा टेक्‍नोलॉजी के हिसाब से बड़े प्रयास की जरुरत है। 9 वर्षों में 100 गीगावाट सौर पैनल बनाने में सक्षम एक फैक्‍ट्री निश्चित रूप से प्रभावशाली है, लेकिन यह आज की संभावनाओं के दायरे से बाहर नहीं है। कई कंपनियां पहले से ही एक वर्ष में 10 गीगावाट से अधिक मॉड्यूल का निर्माण कर रही हैं। बैटरियों के लिए भी पैमाना मौजूद है, और विनिर्माण विस्तार के तहत जो पहले से ही चल रहा है वो आज की उत्पादन क्षमता से दोगुना से अधिक होगा।

हाइड्रोजन काफी अलग है। यह बिजली क्षेत्र में जीरो-कार्बन फ्यूल के रूप में एक भूमिका निभा सकता है, लेकिन इंडस्‍ट्रीयल प्रोसेस में इसकी शायद अधिक वैल्‍यू है, जिसे नेचुरल गैस, कोयले या तेल द्वारा ऐतिहासिक रूप से आपूर्ति की जाने वाली उच्च गर्मी की आवश्यकता होती है। स्वीडिश स्टील निर्माता एसएसएबी एबी हाइड्रोजन का उपयोग करके पांच साल के अंदर जीरो कार्बन स्टील बनाने की योजना बना रही है।

शून्य-उत्सर्जन तरीके से ऐसा करना – यानी, जीवाश्म ईंधन से हाइड्रोजन प्राप्त करने के बजाय, पानी के अणुओं से हाइड्रोजन परमाणुओं को अलग करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा संचालित इलेक्ट्रोलाइजर का उपयोग करना – प्रतिस्पर्धी लागत से शुरू होने वाले कई कारकों पर निर्भर करता है। लागत आपूर्ति का एक अहम फंक्‍शन है। जो मैन्‍युफैक्‍चरिंग कॉस्‍ट के रूप में बदलती है। यही वो जगह है जहां से अंबानी का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्‍ट सामने आता है।

देश के दो सबसे आवश्यक आधुनिक उद्योग- स्टील और सीमेंट प्रोडक्‍शन अभी भी डीकार्बोनाइजेशन से काफी दूर हैं। पिछली सदी के मध्य से इन दोनों क्षेत्रों से वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में जबरदस्त वृद्धि हुई है। चीन में स्टील उत्पादन में असाधारण वृद्धि की वजह से 2000 से 2015 तक अपने उत्सर्जन को दोगुना कर दिया। 1950 के बाद से सीमेंट उत्सर्जन 20 गुना से अधिक बढ़ गया है।

जीरो कार्बन इलेक्‍ट्रीसिटी डीकार्बोनाइजिंग में सहायक होगी। लेकिन हम अभी इसमें काफी दूर है। बिजली क्षेत्र का उत्सर्जन पिछले दशक की शुरुआत में कम हो गया। अक्षय ऊर्जा की अधिक मांग उस कर्व को और नीचे लेकर आएगा जो बिजली बनाने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को बढ़ावा देता है।

स्टील में इसे समझने का प्रयास करें तो ब्लास्ट फर्नेस में इस्तेमाल होने वाले कोकिंग कोल को नए सिरे से उत्पादित हाइड्रोजन से बदलना हो सकता है, जैसा कि एसएसएबी कंपनी कर रह है। सीमेंट के लिए, इसका मतलब उत्पादन प्रक्रिया में जली हुई कुछ प्राकृतिक गैस को हरे हाइड्रोजन से बदलना हो सकता है। यह एक आइडियल साइकिल है। जिसके सफल होने से मांग पैदा होगी। ज्‍यादा से ज्‍यादा सप्‍लाई को प्रोत्‍साहित करेगी और जो बदले में कीमतों को कम करने में मदद करेगी।

सीमेंट में हीट की समस्या से कहीं अधिक है। इसमें केमिस्ट्री की समस्या भी है। चूना पत्थर का सीमेंट में मॉलीक्‍यूलर ट्रांसफोर्मेशन कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है, जो एक समस्या है जिसे अक्षय बिजली हल नहीं कर सकती है। हालांकि, चीजों के रासायनिक पक्ष में भी काम चल रहा है। इस हफ्ते, कैलिफ़ोर्निया स्थित स्टार्टअप फोर्टेरा ने कम कार्बन सीमेंट के आविष्कार के लिए 30 मिलियन डॉलर जुटाए है।