घटती डिमांड और गिरते निवेश की वजह से देश की अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती का असर अब सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर भी दिखने लगा है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर लगातार पांचवी तिमाही में कम होकर 5 प्रतिशत रह गई है। यह पिछले छह साल से अधिक समय में सबसे कम वृद्धि दर रही है। शुक्रवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों में यह जानकारी दी गई।

ताजा आंकड़ों ने औद्योगिक उत्पादन घटने और इसके चलते नौकरियां जाने की आशंकाओं को बढ़ा दिया है। वहीं, डिमांड को बनाए रखना भी मोदी सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती होगी। बॉयोकॉन की संस्थापक किरण मजूमदार शॉ ने इन आंकड़ों को खतरे की घंटी माना है।

बता दें कि 2012-13 की अप्रैल से लेकर जून तिमाही में दर्ज 4.9 प्रतिशत की वृद्धि दर के बाद यह तिमाही ग्रोथ का सबसे न्यूनतम आंकड़ा है। ताजा आंकड़ों की तुलना पिछले साल की इसी तिमाही से करें तो उस वक्त जीडीपी की रफ्तार 8 प्रतिशत की थी। वहीं, भारत का सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का दावा भी अब खत्म हो चुका है। 2019 के अप्रैल से जून की तिमाही में चीन की जीडीपी विकास दर 6.2 प्रतिशत रही है।

सबसे बड़ी चिंता की बात भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ग्रोथ है। इसका सीधा असर नौकरियों और रोजगार पर पड़ता है। पहली तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ महज 0.6 प्रतिशत रह गई है जो पिछले साल इस समयाविधि में 12.1 फीसदी थी। वहीं, पिछली तिमाही की बात करें तो यह आंकड़ा 3.1 पर्सेंट का था।

कृषि सेक्टर की तरक्की की रफ्तार भी मंद पड़ते नजर आ रही है। यहां ग्रोथ रेट 2 पर्सेंट की रही, जबकि पिछले वित्त वर्ष में इसी समयावधि में यह आंकड़ा 5.1 प्रतिशत का था। रोजगार पैदा करने वाले अन्य दो सेक्टर कंस्ट्रक्शन और माइनिंग में विकास दर 5.7 और 2.7 प्रतिशत रही। पिछले साल इसी समयाविधि में यह आंकड़ा क्रमश: 7.1% प्रतिशत और 4.2 प्रतिशत रहा था।

सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के. वी. सुब्रहमण्यम ने कहा कि देश के जीडीपी आंकड़े दिखाते हैं कि वृद्धि अभी भी ऊंची है बस पहले की तुलना में थोड़ी नरमी आई है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में इस तरह का रुख 2013-14 की अंतिम तिमाही में भी देखा गया था। सुब्रहमण्यम ने कहा कि इस सुस्ती के पीछे आंतरिक और बाहरी दोनों कारण जिम्मेदार हैं। सरकार हालात को लेकर काफी सचेत है।