पूर्व गवर्नर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) उर्जित पटेल ने मोदी सरकार के साथ 1.76 लाख करोड़ के लाभांश और सरप्लस फंड के मुद्दे पर मतभेद के बाद इस्तीफा दिया था। अतिरिक्त फंड का निर्धारण करने के लिए आरबीआई के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में छह सदस्यों वाली समिति में शामिल एक सदस्य ने यह दावा किया है।
कमेटी में पूर्व डिप्टी गर्वनर राकेश मोहन ने एनडीटीवी से बातचीत में यह बात कही। उनके इस दावे के साथ ही आरबीआई और सरकार के बीच फंड के मुद्दे पर चले आ रहे पुराने मतभेदों की यह पहली ‘आधिकारिक पुष्टि’ मानी जा सकती है। उन्होंने कहा कि, आपको याद होगा कि पूरा मामला आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 से सामने आया था, जिसमें मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा था कि आरबीआई के पास अधिक भंडार है। संख्या तीन लाख से नौ लाख करोड़ तक कुछ थी। यह वह संदर्भ था जिसमें समिति (बिमल जालान) का गठन किया गया था। इसके बाद ही पटेल ने अपने पद से इस्तीफा दिया था।’ हालांकि उन्होंने अपने इस्तीफे के पीछ निजी कारणों का हवाला दिया था।
मालूम हो कि आरबीआई ने सोमवार को सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये का लाभांश एवं अधिशेष भंडार देने को मंजूरी दी है। इसमें 2018-19 के लिए 1,23,414 करोड़ रुपये का अधिशेष और 52,637 करोड़ रुपये अतिरिक्त प्रावधान के रूप में चिन्हित किया गया है। अतिरिक्त प्रावधान की यह रकम आरबीआई की आर्थिक पूंजी से संबंधित संशोधित नियमों इकोनॉमिक कैप्टिल फ्रेमवर्क (ईसीएफ) के आधार पर निकाली गई है।
कहा जा रहा है कि आरबीआई के इस फैसले से वित्तीय घाटा के बढ़े बिना ही अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने में मोदी सरकार को मदद मिलेगी। हालांकि रिजर्व बैंक बोर्ड के इस फैसले की व्यापक आलोचना हो रही है। जानकार मानते हैं कि इससे नरेंद्र मोदी सरकार को राजकोषीय घाटा बढ़ाए बिना सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद मिलेगी।