मक्के की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिल पाने के चलते बिहार में किसानों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। किसी किसान को गुजारे के लिए जेवर गिरवी रखने पड़े हैं तो कोई अपने बच्चों की फीस तक नहीं भर पा रहा है। खगड़िया जिले के अलौली के रहने वाले किसान विनोद कुमार जायसवाल ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा, ‘कई बार मुझे लगता है कि आत्महत्या ही कर लूं, लेकिन फिर बच्चों के चेहरे मेरी आंखों के सामने आ जाते हैं। एक तरफ निजी कारोबारियों ने अपने सैकड़ों गोदाम खोल लिए हैं और उन्हें हमसे सस्ते दामों में मक्का खरीदकर भऱ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की व्यवस्था नहीं कर रही है।’
जायसवाल ने कहा कि मैंने 3 पर्सेंट के ब्याज पर साहूकार से 1.75 लाख रुपये का लोन लिया था। उम्मीद थी कि अच्छी फसल आने के बाद उसे चुका दूंगा। लेकिन मुझे 25 क्विंटल मक्का सिर्फ 1,100 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बेचना पड़ा है ताकि घरेलू खर्च निकल सके। इसके अलावा बाकी 25 क्विंटल इस उम्मीद में रख लिया है कि शायद भविष्य में सही दाम मिल सके। जायसवाल ने कहा कि वह अपने बेटे मुस्कान की 12,000 रुपये बकाया स्कूल फीस भी नहीं चुका पा रहे हैं। ऐसी मुश्किल का सामना करने वाले विनोद जायसवाल अकेले नहीं हैं। उत्तर बिहार के 18 जिलों में से तीन खगड़िया, सहरसा और बेगूसराय के ज्यादातर किसानों का यही हाल है। देश के कुल मक्का उत्पादन में इन जिलों की 40 फीसदी हिस्सेदारी है।
एक अन्य किसान ने बताया कि उसे अपनी पत्नी के जेवर तक गिरवी रखने पड़े हैं ताकि उसका इलाज हो सके। इसके अलावा कई अन्य लोगों ने कहा कि फसल न बेच पाने के कारण वह बच्चों की स्कूल और कॉलेज की फीस नहीं भर पा रहे हैं। कई ऐसे भी किसान हैं, जिन्होंने इस उम्मीद में अपनी फसल को रख लिया है कि भविष्य में शायद कुछ अच्छा रेट मिल जाए। लेकिन ऐसे किसान जिन्हें अपनी दैनिक जरूरतों के लिए भी पैसों की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है, उन्होंने 1,050 से 1,150 रुपये तक के रेट में ही मक्के की फसल बेच दी है, जबकि किसान की खुद की लागत 1,213 रुपये प्रति क्विंटल है। इस साल के लिए मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP 1,850 रुपये प्रति क्विंटल है।
बीते साल एमएसपी 1,760 रुपये ही था, लेकिन किसानों ने 1,900 रुपये से लेकर 2,400 रुपये तक में मक्के की फसल बेची थी। बीते साल अच्छी कीमत मिलने के चलते किसानों ने इस साल मक्के का उत्पादन बढ़ा दिया, लेकिन उन्हें निराशा का सामना करना पड़ा। बिहार में इस साल 60 लाख मीट्रिक टन मक्के का उत्पादन हुआ है, जबकि बीते साल यह आंकड़ा 40 का ही था। सहरसा के सोनबरसा के किसान दिनेश सिंह ने कहा कि मैंने 32 क्विंटल मक्का 1,100 रुपये प्रति क्विंटल के भाव में बेचा है ताकि परिवार की जरूरतों को पूरा कर सकूं।
जिले में हरियाणा, यूपी, नेपाल और पश्चिम बंगाल तक के कारोबारियों के करीब 100 गोदाम हैं, जहां वे मक्का स्टोर कर रहे हैं। कारोबारियों का कहना है कि वे कोरोना के चलते कीमतें कम हैं और वे ज्यादा नहीं दे सकते। आखिर सरकार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने का काम क्यों नहीं कर रही। उन्होंने कहा कि वह अपने बेटे की इंजीनियरिंग कॉलेज की 80,000 रुपये फीस नहीं दे पा रहे हैं और उनके बेटे को दिल्ली से वापस लौटना पड़ा है।

