विशेषज्ञों का मानना है कि मारीशस भारत के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का तरजीही स्रोत बना रहेगा क्योंकि हिंद महासागर स्थित इस द्वीप देश से भारत को एफडीआई पर मार्च 2019 तक रियायती कर सुविधा मिलेगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने साइप्रस के साथ संशोधित संधि करने को बुधवार (24 अगस्त) मंजूरी दी जिससे भारत को वहां से आने वाले निवेश पर पूंजी लाभ कर लगाने का अधिकार होगा। सरकार ने मारीशस के साथ पुरानी कर संधि में पहले ही बदलाव कर दिया है।
नांगिया एंड कंपनी के प्रबंध भागीदार राकेश नांगिया ने कहा कि भारत-मॉरीशस कर संधि के विपरीत, साइप्रस के नागरिकों के लिए लिए किसी तरह की रियाती कर की व्यवस्था नहीं की गयी है जिसको देखते हुए विदेशी निवेशक मार्च 2019 तक साइप्रस के बजाय मारीशस के जरिए ही भारत में निवेश को प्राथमिकता दे सकते हैं। मॉरीशस के साथ संशोधित संधि में वहां से होने वाले शेयर निवेश पर अप्रैल-मार्च 2017-19 तक पूंजीगत लाभ आधी दर (7.5 प्रतिशत) से लगाया जाएगा। उसके बाद पूरी दर लागू होगी।
पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर अभिषेक गोयनका ने कहा कि साइप्रस संधि में विदहोल्डिंग कर की दर 10 प्रतिशत बनी रहने की संभावना है जबकि मॉरीशस के मामले में ब्याज आय पर विदहोल्डिंग कर की दर 7.5 प्रतिशत है। उन्होंने कहा,‘ऐसा लगता है कि दो तथ्यों पर मॉरीशस के साथ संधि बेहतर है..।
अशोक महेश्वरी एंड एसोसिएट्स के पार्टनर अमित महेश्वरी ने कहा कि ढांचागत रिण निवेश के लिए मॉरीशस रूट अधिक लोकप्रिय होगा। उल्लेखनीय है कि बीते वित्त वर्ष में मॉरीशस से 8.3 अरब डॉलर का एफडीआई आया था। वहीं साइप्रस से 50.8 करोड़ डॉलर का एफडीआई आया। वहीं सिंगापुर से 13.69 अरब डॉलर जबकि नीदरलैंड से 2.64 अरब डॉलर एफडीआई आया।