उच्चतम न्यायालय ने ‘राजनीतिकों-नौकरशाहों-कार्पोरेट’ में सांठगांठ की ओर कथित रूप से इशारा करने वाली एस्सार ई-मेल मामले की न्यायालय की निगराने में जांच के लिये दायर जनहित याचिका पर आज केन्द्र सरकार और दूसरे प्रतिवादियों से जवाब मांगा।

न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने गैर सरकारी संगठन सेन्टर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस की जनहित याचिका पर केन्द्र और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी किये। इन सभी को छह सप्ताह के भीतर नोटिस का जवाब देना है।

इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही न्यायालय ने इस गैर सरकारी संगठन के वकील प्रशांत भूषण से कहा कि वह सीलबंद लिफाफे में अपनी जानकारी के स्रोत का खुला करें। इस पर भूषण ने कहा, ‘‘वह व्हिसिलब्लोअर है और उसे पहले ही धमकी मिल चुकी है।’’

यह जानकारी साझा करने के प्रति अनिच्छा जाहिर करते हुये उन्होंने कहा कि यह सूचना मुहैया कराने वाला व्यक्ति पहले ही नौकरी छोड़ चुका है और उसे धमकी भी मिल चुकी है। न्यायालय ने जानना चाहा कि क्या नौकरशाहों और राजनीतिकों द्वारा इस समूह को दिये गये लाभ और इसके एवज में हुये काम के बीच कोई संबंध है। इसके जवाब में भूषण ने कहा कि अहसान प्राप्त करने वाले ये सारे अधिकारी और मंत्री जानते थे कि वे अपनी पेशेगत हैसियत से कंपनी विशेष की फाइलों से डील कर रहे थे। उन्होंने अनेक ईमेल संवाद का हवाला देते हुये दावा किया कि इसमें राजनीतिकों, नौकरशाहों और कंपनी के बीच सांठगांठ रही है।

उन्होंने भ्रष्टाचार निवारण कानून के प्रावधान का जिक्र करते हुये कहा कि उपहार और अहसान लेना ही इस कानून के तहत अभियोज्यता का निष्कर्ष निकालने के लिये पर्याप्त है। संक्षिप्त सुनवाई के दौरान भूषण ने कहा कि यह नीरा राडिया प्रकरण जैसा ही मामला है और सच्चाई का पता लगाने के लिये इसकी जांच जरूरी है।

न्यायाधीशों ने इन ईमेल को रिकॉर्ड से हटाये जाने की आशंका व्यक्त करते हुये इनकी प्रमाणिकता के बारे में जानना चाहा तो भूषण ने कहा कि कोई भी फॉरेन्सिक जांच इन्हें प्रमाणित कर सकता है। भूषण ने न्यायालय से कहा कि उन्होंने पहले ही कंपनी को आगाह कर दिया है कि यदि व्हिसिलब्लोअर को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचा तो फिर वह सारे मसले पर प्रेस कांफ्रेस आयोजित करेंगे।

न्यायालय ने भूषण से जानना चाहा कि उन्होंने याचिका में शामिल नामों को क्या इस आधार पर प्रतिवादी नहीं बनाया कि उनकी छवि धूमिल हो जायेगी। भूषण ने हवाला मामले का जिक्र करते हुये कहा कि याचिका में नामित व्यक्तियों को पक्षकार बनाने की जरूरत नहीं है।
उन्होंने कांग्रेस के नेता और तत्कालीन कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, तत्कालीन इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा, दिग्विजय सिंह और भाजपा नेता वरुण गांधी के नामों का भी जिक्र किया। उन्होंने कुछ ईमेल का हवाला देते हुये कहा कि नेताओं और नौकरशाहों ने दस व्यक्तियों के नामों की सिफारिश की थी, इनमें से तीन व्यक्तियों को कंपनी में नौकरी मिल गयी थी।

यह याचिका 27 फरवरी को दायर की गयी थी। इसमें नेताओं, नौकरशाहों और कॉर्पोरेट की कथित सांठगांठ की न्यायालय की निगरानी में जांच कराने का अनुरोध किया गया है। याचिका में कहा गया है कि कॉर्पोरेट घराने सार्वजनिक नीतियों को बदलवाने के लिये अपने धन बल का प्रयोग करते हैं और इसके एवज में नेताओं और नौकरशाहों को लाभ पहुंचाते हैं।

याचिका में यह भी कहा गया है कि कार्पोरेट घराने मीडिया में खबरे छपवाने के लिये अपने धन और प्रभाव का इस्तेमाल करते हैं और ऐसी स्थिति में सरकार को रियायती दर पर भूमि आबंटन, अखबारी कागज और मीडिया संगठनों तथापेड न्यूज या फिर कॉर्पोरेट घरानों का पक्ष लेने वाली खबरें प्रकाशित करने वाले पत्रकारों को आवास आबंटन जैसी सुविधायें रद्द करनी चाहिए।

याचिका के अनुसार यह कथन भारत में तेल, इस्पात, ऊर्जा, बंदरगाह, जहाजरानी और सेवा क्षेत्रों में कारोबार करने वाले एस्सार समूह की कंपनियों के आंतरिक ईमेल और दस्तावेजों पर आधारित है। याचिका में कहा गया है कि याचिकर्ता सोसायटी यह सारी जानकारी न्यायालय के समक्ष उसके विचार और उचित निर्देश के लिये पेश की जा रही है। याचिका में 2009 से प्रमुख अधिकारियों ईमेल के आदान प्रदान का विवरण दिया गया है जिसमें नेताओं, नौकरशाहों और कॉर्पोरेट घरानों में कथित सांठगांठ का संकेत मिलता है।