भारत समेत तमाम देशों में भले ही तेजी से पेमेंट्स के लिए ई-वॉलेट्स का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है, लेकिन इंडोनेशिया में इस्लामिक मान्यताओं के चलते ऐसा नहीं है। ऐसे में फिनटेक कंपनियों ने ‘शरिया फिनटेक’ की नीति पर चलते हुए विस्तार की राह अपनाई है। दरअसल किसी भी तरह के कैशबैक और ब्याज को इस्लामिक जानकार गलत मानते हैं और इसके चलते इनका प्रयोग नहीं किया जा रहा था। अब गूगल के मालिकाना हक वाले GoPay का तेजी से इस्तेमाल बढ़ा है क्योंकि कंपनी ने इस्लाम के मुताबिक तौर-तरीके अपनाए हैं। लाखों इंडोनेशियाई लोगों की तरह गांदी इसवरा भी हर समय कैश लेकर चलते थे और नमाज के बाद मस्जिद के डोनेशन बॉक्स में कैश डाल देते थे। हालांकि बीते साल से कुछ बदलाव आया है और 35 वर्षीय इंजीनियर इसवरा समेत तमाम लोग अब GoPay एप के जरिए पेमेंट कर रहे हैं।
दरअसल शुरुआत में इसवरा डिजिटल पेमेंट को इस्लाम के खिलाफ मानते थे। उनका कहना था कि ई-वॉलेट्स के द्वारा जो भी इनाम और डिस्काउंट दिए जाते हैं, वह इस्लाम के खिलाफ है। वह कहते हैं, ‘शुरुआत में मैंने सोचा था कि इनका इस्तेमाल सूदखोरी जैसा है, लेकिन फिर कुछ दिनों बाद देखा कि रोजमर्रा की जिंदगी में ये बेहद जरूरी हैं।’
आधे लोगों का बैंक खाता नहीं, मोबाइल सबके पास: दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले इस्लामिक देश इंडोनेशिया में फिनटेक कंपनियों को लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। हालत यह है कि देश में आधे लोगों के पास बैंक खाते की सुविधा नहीं है, लेकिन मोबाइल फोन लगभग सभी लोगों के पास मौजूद है। इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि डिजिटल पेमेंट्स और अन्य फिनटेक सर्विसेज के लिए इस्लामिक कानूनों से तालमेल बिठाना मुश्किल पड़ रहा है और ग्रोथ में एक बाधा है।
मौलवियों संग सेमिनार कर रहीं कंपनियां: फिनटेक कंपनियों ने इस्लामिक संगठनों के साथ मिलकर कार्यक्रम करने शुरू किए हैं। इस्लामिक स्कॉलर्स के साथ मिलकर फोरम आयोजित किए जा रहे हैं। हाल ही में इंडोनेशिया में मौलवियों के शीर्ष संगठन की ओर से डिजिटल वॉलेट्स के इस्तेमाल को कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दी गई है। GoPay ने इंडोनेशिया मस्जिद काउंसिल के साथ साझेदारी की है और हर मस्जिद में जकात को डिजिटल पेमेंट के जरिए करने की सुविधा देना शुरू किया है। इस काउंसिल के तहत देशभर की 8,00,000 मस्जिदें आती हैं। इंडोनेशिया में हर साल 500 मिलियन डॉलर जकात दी जाती है।
शरिया के मुताबिक होगी डिजिटल पेमेंट: यही नहीं एक और डिजिटल पेमेंट कंपनी LinkAja ने शरिया कानून के तहत ही पेमेंट सर्विस मुहैया करने की शुरुआत की है। इसका टारगेट परंपरागत विचार रखने वाले मुस्लिमों को अपने कस्टमर के तौर पर जोड़ना है। यही नहीं इस वॉलेट कंपनी ने सिर्फ इस्लामिक बैंकों के पैसे को ही स्वीकार करने का फैसला लिया है।