Dabur vs Patanjali: भारत में विज्ञापन वॉर नया नहीं है, लेकिन जब दो आयुर्वेदिक दिग्गज अपने स्टार प्रोडक्ट के लिए भिड़ जाएं तो लोगों का ध्यान इस तरफ जाता है। च्यवनप्राश के विज्ञापन के लिए डाबर इंडिया(Dabur India) और पतंजलि आयुर्वेद (Patanjali Ayurveda) की लड़ाई अब अदालत पहुंच गई है। डाबर का दावा है कि पतंजलि का विज्ञापन भ्रामक जानकारी फैला रहा है और ब्रैंड को चमकाने के लिए उचित प्रतिद्वन्दिता की सीमा को पार कर दिया गया है।

इस मामले ने एक बार फिर कई सवाल खड़े कर दिए हैं जैसे कि विज्ञापन में उचित प्रतिद्वन्दिता क्या है और किन चीजों से सीमा पार होती है। गौर करने वाली बात है कि ऐसा पहली बार नहीं है जब भ्रामक दावों और विज्ञापनों को लेकर पतंजलि राडार पर है।

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डाबर और पतंजलि के बीच क्या है लड़ाई?

पतंजलि और डाबर के बीच इस लड़ाई का कारण बना है च्यवनप्राश का एक विज्ञापन। पतंजलि का दावा कि उनके च्यवनप्राश प्रोडक्ट में 51 हर्ब और हिंट हैं और इस विज्ञापन में यह भी संकेत दिए गए हैं कि डाबर के च्यवनप्राश में सिर्फ 40 हर्ब हैं। डाबर का कहना है कि यह गलत है। इस आग में घी का काम उस दावे ने किया जिसमें कथित तौर पर डाबर के च्यवनप्राश में मर्क्यूरी होने की बात कही गई है और इसे अप्रत्यक्ष तौर पर बच्चों के लिए असुरक्षित बताया गया है। डाबर का कहना है कि इससे ना केवल ब्रैंड की छवि खराब होती है बल्कि यह दशकों में बनाए गए ग्राहकों के भरोसे को भी तोड़ने का काम कर रहा है।

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वहीं पतंजलि का कहना है कि विज्ञापन में कुछ भी गलत नहीं है। दूसरी ओर, पतंजलि का कहना है कि उसके विज्ञापन में कुछ भी गलत नहीं है। कंपनी इसे पफ़री (puffery) कहती है – एक मानक विज्ञापन रणनीति (standard advertising tactic) जहां ब्रांड प्रतिद्वंद्वियों को टारगेट किए बिना अपने स्वयं के उत्पादों के बारे में डींगें मारते हैं। पतंजलि ने जोर देकर कहा कि उसने डाबर का नाम नहीं लिया और ना ही उत्पादों की सीधे तुलना की, उनका तर्क है कि दावे सिर्फ प्रचारात्मक हैं और प्रोडक्ट लेबल जैसी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी पर आधारित हैं।

किस लिमिट तक हो सकता है प्रचार?

यह सिर्फ दो ब्रांडों के झगड़े का मामला नहीं है। यह इस बारे में भी है कि कंपनियां अपने उत्पादों का प्रचार करते समय कितनी दूर तक जा सकती हैं। प्रतिस्पर्धी FMCG (Fast Moving Consumer Goods) बाजार में, ब्रांड अक्सर रचनात्मक विज्ञापन और पूरी तरह अपमान के बीच एक महीन रेखा के बीच रहते हैं।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, पतंजलि का बचाव हैवेल्स इंडिया लिमिटेड बनाम अमृतांशु त्रेहान मामले की कानूनी मिसाल पर निर्भर है। उस मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ब्रांड अपने उत्पादों की तुलना दूसरों के साथ कर सकते हैं, बशर्ते वे ईमानदार हों और प्रतिस्पर्धियों को बदनाम करने से बचें। हालाxकि, उपभोक्ताओं को गुमराह करने वाले दावों की अनुमति नहीं है। पतंजलि का तर्क है कि उसने अपने विज्ञापन को प्रतिस्पर्धी लेकिन निष्पक्ष बनाते हुए इन नियमों का पालन किया है।

अदालत में क्या-कुछ हुआ?

जस्टिस मिनी पुष्करणा के नेतृत्व में दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में संबंधित विज्ञापन की समीक्षा की। डाबर ने सीधे तौर पर नाम लिए बिना तर्क दिया कि विज्ञापन उसके उत्पाद को बदनाम करता है, उसकी गुणवत्ता और सुरक्षा पर संदेह पैदा करता है। पतंजलि ने प्रतिवाद किया कि डाबर के उत्पाद से कोई भी संबंध पूरी तरह से संयोग है और विज्ञापन अपने स्वयं के उत्पाद को बढ़ावा देने से जुड़ा है।

अदालत ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है, जिससे कंपनियां और उद्योग पर नजर रखने वाले दोनों असमंजस में हैं।