कोरोना वायरस के संकट के चलते दुनिया में अब कच्चा तेल पानी से भी सस्ता हो गया है। सोमवार को अमेरिकी क्रूड ऑयल की कीमत जीरो से भी नीचे लुढ़कते हुए -40 डॉ़लर प्रति बैरल पर पहुंच गए। यह पहला मौका है, जब कच्चे तेल की कीमतों में इतनी बड़ी गिरावट देखने को मिली है। सऊदी अरब से लेकर रूस और अमेरिका तक की ओर से कच्चे तेल के लगातार उत्पादन और मांग में कमी के चलते यह स्थिति पैदा हुई है। हालात यह है कि दुनिया भर में क्रूड ऑयल का कोई खरीददार ही नहीं है। आइए जानते हैं, क्यों पानी के भाव भी नहीं मिल रहे तेल के खरीददार…
मांग थमी और उत्पादन जारी: दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहला मौका है, जब कच्चे तेल की कीमत जीरो के लेवल पर पहुंच गई। पहली बात यह समझने की है कि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट कोरोना के संकट से पहले से ही जारी थी। इसके बाद कोरोना ने क्रूड ऑयल के लिए कोढ़ में खाज जैसा काम किया। बीते कई महीनों से लुढ़क रहे कच्चे तेल के दाम मार्च के अंत में 20 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए थे। इसका सीधा गणित है कि सप्लाई इस समय मांग से कहीं ज्यादा है। खासतौर पर ओपेक देशों की सप्लाई और फिर अमेरिकी की ओर से आपूर्ति के बाद यह संकट और गहरा गया है। वजह यह कि दोनों ही पक्षों की ओर से कटौती पर समय रहते सहमति नहीं बन पाई।
तेल कुंओं को बंद क्यों नहीं किया जा सकता: पिछले कुछ दिनों तेल उत्पादक खाड़ी देशों के समूह ओपेक से रूस ने भी तालमेल स्थापित किया है और उत्पादन में 10 पर्सेंट की कटौती पर सहमति जताई है। हालांकि इसके बाद भी उत्पादन मांग के मुकाबले काफी अधिक है। अब सवाल यह है कि आखिर तेल का उत्पादन मांग बढ़ने तक पूरी तरह रोका क्यों नहीं जा सकता। दरअसल इसमें भी तेल उत्पादक देशों और कंपनियों का ही घाटा है क्योंकि एक बार तेल कुंओं को बंद करने के बाद उन्हें दोबारा शुरू करना और भी महंगा एवं जटिल है। इसके अलावा देशों में प्रतिस्पर्धा की वजह यह है कि यदि कोई एक तेल के उत्पादन में कमी करता है तो उसे मार्केट में अपनी हिस्सेदारी घटने का भी डर रहता है।
क्या होता है कीमत का माइनस में जाना: सोमवार को क्रूड ऑयल की कीमत -40 डॉ़लर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। दरअसल कीमतों का नेगेटिव में जाने का अर्थ यह होता है कि बेचने के लिए सामान के साथ खरीददार को कीमत भी अदा करना। रिसर्च एवं कंसल्टिंग फर्म आईएचएस मार्किट से जुड़े आरोन ब्रैडी ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, ‘यदि आप उत्पादक हैं और आपके सामने मार्केट ही खत्म है। फिर तेल रखने के लिए भी जगह की कमी है तो समझिए कि अब भाग्य आपके साथ नहीं है।’ दरअसल दुनिया भर की रिफाइनरीज की ओर से क्रूड ऑयल को गैस, डीजल और पेट्रोल में तब्दील करने की प्रक्रिया ही ठप है। दुनिया में उड़ानें बंद हैं। वाहनों के पहिए थम गए हैं। ऐसी स्थिति में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट अप्रत्याशित नहीं है।
दिवालिया हो सकती हैं अमेरिकी कंपनियां: यदि कुछ और दिनों तक यही हाल रहा तो कई अमेरिकी कंपनियां दिवालिया हो सकती हैं। इसकी वजह यह है कि फिलहाल लॉकडाउन की स्थिति में पेट्रोल और डीजल का इस्तेमाल ही नहीं है। इसके अलावा कई देशों ने सस्ते तेल की खरीदकर पहले ही अपने भंडार भर लिए हैं और अब उनके पास स्टोरेज तक की जगह नहीं बची है।
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