Crude oil price today: तेल की कीमतों में तेजी या गिरावट की स्थिति हमेशा दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करती रही है। सऊदी अरब और रूस के बीच तेल उत्पादन की सीमा तय करने को लेकर करार पर सहमति न बन पाने के चलते एक बार फिर यह स्थिति पैदा हो गई है। कोरोना वायरस, चीन में आर्थिक सुस्ती, ग्लोबाइलजेशन पर नियंत्रण की कोशिश और अमेरिका के दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक बनने के चलते क्रूड ऑयल की कीमतों में सोमवार को तीन दशकों की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली।
इस स्थिति से एक तरफ तेल उत्पादक देशों के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है तो वहीं भारत जैसे तेल आयातक देशों के मजे आ सकते हैं। दुनिया भर में ब्याज की दरें और महंगाई अपने निचले स्तर पर हैं। ऐसे में केंद्रीय बैंकों के पास तेल की कीमतों को बढ़ाने के लिए सीमित विकल्प ही बचे हैं।
तेल मार्केट के कई जानकारों का कहना है कि आने वाले कुछ महीनों में क्रूड ऑयल की कीमत 30 डॉलर प्रति बैरल तक गिर सकती है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक यदि कच्चे तेल के दाम इस स्तर तक गिरते हैं तो भारत की जीडीपी में तकरीबन एक फीसदी का इजाफा हो सकता है। इसके अलावा इंडोनेशिया की जीडीपी ग्रोथ में 1.25 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है।
अब यदि कच्चे तेल के लुढ़कने के चलते घाटा उठाने वाली अर्थव्यवस्थाओं की बात की जाए तो रूस की जीडीपी ग्रोथ में 3 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल आयातक देश भारत को क्रूड ऑयल की घटती कीमतों से बड़ा फायदा हो सकता है। इसके चलते मोदी सरकार को पेट्रोल और डीजल पर टैक्स में इजाफा कर अपनी झोली भरने में मदद मिलेगी। सरकार इस रकम के जरिए विकास की योजनाओं को बढ़ा सकेगी और अर्थव्यवस्था को गति देन के लिए पैसे डाल सकेगी।